Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 105
________________ राजुल गुफा : 'मल्लवाला जिनालय' से दक्षिणदिशा की तरफ थोडी सीढियाँ आगे जाते ही पत्थर की एक बड़ी शिला के नीचे झुककर जाने से वहाँ पर लगभग १ १/२ से २ फूट ऊँचाईवाली राजुल-रहनेमि की मूर्ति स्थापित होने के कारण यह स्थान 'राजुल की गुफा' के नाम से पहचाना जाता है। प्रेमचंदजी की गुफा [गोरजी की गुफा] : राजुल की गुफा से बाहर निकलकर दक्षिणदिशा के तरफ के कच्चे रस्ते से आगे जाते हुए बायें हाथ की तरफ सातपुडा के कुंड की तरफ जाने का कच्चा रस्ता आता है और दाएं हाथ की तरफ झाडी के रस्ते से नीचे उतरते-उतरते पहाड़ के अंत में एक बड़ी शिला आती है, जिसके नीचे 'प्रेमचंदजी की गुफा' है। इस गुफा के पास ही खाई होने से अत्यन्त सावधानी पूर्वक इस गुफा के द्वार में प्रवेश करना पडता हैं । इस गुफा में अनेक महात्माओं ने साधना की है। इसमें श्री प्रेमचंदजी महाराज नामक साधु ने बहुत लंबे समय तक साधना की है । वे योग विद्या में बहुत कुशल थे । वे अपने गुरुभाई कपूरचंदजी को ढूंढने के लिए आए तब इस स्थान पर रुके थे । कपूरचंदजी महाराज के लिए ऐसा सुनने में आया है कि वे अनेक रूप धारण कर सकते थे और अनेक स्थान पर जाने के लिए उनके पास आकाशगामिनी विद्या भी थी। यह गुफा शेठ देवचंद लक्ष्मीचंद की पेढी की मालिकी की है। इसमें समय-समय पर जरुरी ऐसी मरम्मत भी भूतकाल में इस पेढी के द्वारा ही करवायी गयी है। शेठ देवचंद लक्ष्मीचंद की पेढी की तलहटी की जगह में भाताखाता के पीछे प्रेमचंदजी महाराज के चरण पादुका की देवकुलिका बनवायी गयी है। जिसमें वि.सं. १९२१ का उल्लेख है। उसके पास दयालचंदजी महाराज के चरण पादुका में वि.सं. १९२२ के साल का उल्लेख है । इस गुफा के बाहर कच्चे रस्ते में पूर्वदिशा की तरफ आगे पाटवड के किनारे से बिलखा जा सकते हैं । श्री प्रेमचंदजी महाराज की गुफा से वापस मुरव्य सीढी के रास्ते से लगभग ९० सीढियाँ चढने पर चतुर्मुखजी का मंदिर आता है। रास्ते में दायीं और दिगंबर संप्रदाय का मंदिर आता है। (१३) चौमुखजी जिनालय : [श्री नेमिनाथ भगवान - २५ इंच] चौमुखजी के जिनालय में वर्तमान में उत्तराभिमुख मूलनायक की नेमिनाथ, पूर्वाभिमुख श्री सुपार्श्वनाथ, दक्षिणाभिमुख श्री चन्द्रप्रभस्वामी और पश्चिमाभिमुख श्री मुनिसुव्रतास्वामी हैं। इनकी प्रतिष्ठा वि.सं. १५११ में अ. जिनहर्षसूरि महाराज साहेब ने करवायी हैं ऐसा पबासण में उल्लेख है । यह जिनालय 'श्री शामला पार्श्वनाथ' के नाम से भी पहचाना जाता है। इस का

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