Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 92
________________ को भी इकट्ठा किया। सबके साथ मिलकर भविष्य की सुयोग्य व्यवस्था के लिए विचार विमर्श करने के बाद फलश्रुति के रुप में बत्तीस सुयोग्य पात्रों में से तीन विद्वान मुनिभगवंतों को पंचपरमेष्ठि के तृतीय अर्थात् आचार्यपद पर स्थापन करने में आता है। ये तीन महात्मा १. प.पू. आचार्य वीरसूरि २. प. पू. आचार्य शालिभद्रसूरि तथा ३. प.पू. आचार्य सर्वदेवसूरि महाराज साहेब जैसे साक्षात् रत्नत्रयी न हो ! उस तरह सद्व्रत से अलंकृत और असाधारण तेज से दीपने लगे थे । बरसों तक प्रभु के शासन की अद्भुत सेवा द्वारा पूज्य आचार्य श्री शांतिसूरि महाराज साहेब ने प्रचंड पुण्योपार्जन किया था। अब फलस्वरूप जीवनसंध्या के सर्वोत्कृष्ट काल में आत्मसाधना में लीन होने के लिए तडप रहे थे। पूज्यश्री के विचाररूपी रत्नाकर में से एक के बाद एक रत्न बाहर आ रहे थे । उनमें से एक विचार दृढ हुआ कि अनंत तीर्थंकर परमात्मा जिस क्षेत्र से सिद्धपद को साध चुके हैं, भविष्य में साधनेवाले हैं और वर्तमान चोवीशी के बाइसवें तीर्थंकर बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ के दीक्षा - केवलज्ञान और मोक्षकल्याणक जिस पावनभूमि पर हुए हैं, ऐसी साधकों की साधनाभूमि महामहिमावंत श्री गिरनार महातीर्थ में जाकर अंतिमसाधना करूँ । आचार्य भगवंत अनंत तीर्थंकरों के कल्याणकों से पवित्र हुए श्री गिरनार की भूमि की स्पर्शना करने के मनोरथ के साथ रैवतीगिरि के मार्ग पर प्रयाण करते हैं। यश नामक सुश्रावक के सोढ नामक सुपुत्र को भी साथ में रखते हैं। छोटे-छोटे गाँवो की भूमि को अपनी चरणरज द्वारा पवित्र करते हुए उग्रविहार द्वारा आचार्य श्री बहुत ही कम समय में रैवताचल की शीतल छाया में पहुँच गए। गिरि आरोहण करके, नेमिप्रभु के दर्शन द्वारा नयनों को पावन किया। श्री नेमिनाथ परमात्मा का ध्यान धरके धर्मध्यान रूपी अग्नि की ज्वाला से भवभ्रमणरुप विष लता को भस्मीभूत करने का प्रबल पुरुषार्थ शुरु किया और भूख प्यास, निद्रा आदि से अलिप्त बनकर परमसमाधि के शिखरों को पार करते हुए पच्चीस दिनों के अनशन के अंत में विक्रम संवत् १०९६ के ज्येष्ठ महीने की शुक्ल नवमी को मंगलवार के दिन कृतिका नक्षत्र में महाशासनप्रभावक वादिवेताल श्री शांतिसूरि महाराज साहेब ने गिरनार मंडन श्री नेमिनाथप्रभु के परम सान्निध्य में परमपद की ओर प्रयाण किया था । ८५

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