Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 73
________________ "अभी तक क्या विचार कर रहे हो ? यदि आपके पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है तो यह जिम्मेदारी मुझे सौंप दो। मेरा निर्णय सभी को स्वीकार्य होगा न ? बाद में उस निर्णय में किसी भी तरह की छूटछाट का अवकाश नहीं रहेगा, चलेगा न ?" "अरे! मंत्रीश्वर ! आप जो न्याय करेंगे, उसमें पक्षपात का अवकाश हो ही नहीं सकता। आपके वचन हमें शिरोमान्य रहेंगे। उसमें लेशमात्र भी शंका मत कीजिए। आप इस विषय में निश्चित बनकर अपना अभिप्राय फरमाईए। जिससे विश्ववंदनीय वैरागी ऐसी विभूतियों की भावना भी टिकी रहे, और हम गरीबों की भी समस्या का हल हो जाय।" सभी हाथ जोडकर मंत्रीश्वर को विनंती करते हैं । विचक्षण बुद्धिवाले मंत्रीश्वर ने अत्यन्त स्नेहपूर्वक सभी के विश्वास को जीतकर सभी की संपूर्ण संमतिपूर्वक घोषणा की कि "देवाधिदेव बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिप्रभु के ३-३ कल्याणकों से पावन बनी इस गिरनार गिरिवर की भूमि पर आज से यात्रिककर बंद किया जाता है। यदि कोई भूल से भी यह कर वसूल करने का प्रयत्न करेगा तो उसे कडक से कडक सज़ा दी जाएगी। आप सब की आजीविका के लिए गिरनार गिरिवर की गोद में रहा कुहाडी गाँव आप सभी को सौंपा जाता है। इस कुहाडी गाँव की संपूर्ण कमाई पर आज से आप सभी का अधिकार होगा। आज से आप सब इस गाँव के मालिक हो । अब तो आपकी चिंता दूर हुई न ? अब तो आप खुश हो न ?" मंत्रीश्वर के सुवर्णवचनों के श्रवण से सभी के मनमयूर नाच उठे। कुहाड़ी गाँव की संपूर्ण कमाई के अधिकार के दस्तावेज पाकर सभी निश्चित बने । वातावरण में चारों ओर तीन लोक के नाथ श्री नेमिप्रभु की तथा मंत्रीश्वर वस्तुपाल की जयजयकार होने लगी । गिरनार गिरिवर की गुफाओं से निकलते जयजयकार शब्द के घोष से सकल सृष्टि में प्रशमरस की सुवास फैल गयी। ६६

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