Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ मंत्रीश्वर ने सहायक बनने की संमति देते हुए कहा कि, "महात्मा आप आज्ञा दीजिए सेवक तैयार है। प्रभु के शासन के लिए यदि मुझे अपना मस्तक भी कटवाना पड़े तो यह मेरे जीवन का स्वर्णिम दिन बनेगा" । महात्मा और मंत्रीश्वर ने यात्रिककर बंद करने के उपाय के विषय में चर्चा विचारणा करने के बाद मुनिवरों ने गिरि आरोहण करना प्रारंभ किया। पीछे से रुकने का आदेश आने के बाद भी मुनिवर दृढ मनोबल के साथ मंदगति से आगे बढ़ रहे थे। तब वापस आक्रोश के साथ आवाज़ आयी सुनते हो कि नहीं? रोज-रोज इस तरह मुफ्त में चले आते हो? कुछ शरम है या नहीं? कितनी बार कहा है कि यात्रिककर ५ द्रम न भरो तब तक एक सीढी भी नहीं चढनी । अधिकारी के आक्रोश के सामने महात्मा भी भड़क उठे और "ईंट का जवाब पथ्थर से" इस न्याय से उग्रता पूर्वक सामने जवाब दिया कि "हमारे देवाधिदेव के दर्शन करने के लिए क्या मूल्य चुकाना पडता है ? दादा का दरबार तो हमेशा सब के लिए खुला ही होता है। उसमें भी हमारे जैसे निष्परिग्रही साधु के पास संपत्ति कैसी ? हमने तो हमारे सौंदर्य की अतिमूल्यवान पूंजी के समान हमारे सिर के बालों का भी त्याग किया है तो आपको क्या दें? हम जैसे मस्तक मुण्डितों को यात्रिककर क्यों भरना?" दोनों पक्षों के बीच शब्दों की आतिशबाजी चली। और भयंकर शब्दयुद्ध के अंत में सामनेवाले पक्ष के स्वरबाणों को चकनाचूर करके यात्रिककर के नियम को नष्ट करके मुनिवरों ने दो दिनों की घोर तपश्चर्या के अंत में गिरिवर के दर्शन प्राप्त किए। इस तरफ खुद का सोचा हुआ न होने से यात्रिककर वसूल करनेवाले अधिकारियों का क्रोध आसमान पर चढा । वर्षों से चली आ रही यात्रिककर की पद्धति नष्ट होने का एहसास होने लगा । स्वयं की मानहानि सहन नहीं होने के कारण न्याय प्राप्त करने के लिए वे सब महामात्य के पास पहुंचे। मंत्रीश्वर ने उन्हें बोलने का अवसर दिया । थोडी ही देर में मंत्रीश्वर ने उन्हें आश्वासन दिया और कहा कि हम इस विषय में जरूर विचार करेंगे । उन अधिकारियों के दिल को ठंडक मिली। थोडी ही देर में मंत्रीश्वर ने मुनिवरों को संदेश भेजा और उनका आगमन होते ही मंत्रीश्वर ने पूज्यों के प्रति औचित्य पालन कर अत्यन्त बहुमान पूर्वक उनका सत्कार किया । यात्रिककर के अधिकारियों ने मंत्रीश्वर के समक्ष अपनी शिकायत की प्रस्तुति की कि, "महामात्य ! इन महात्माओं ने वर्षों से चली आ रही हमारी यात्रिककर की परंपरा को तोडकर जबरदस्ती, कल गिरिवर की यात्रा करने निकल पडे । हमारी वर्षों से चली आ रही व्यवस्था का खुलेआम बहिष्कार किया है, इस विषय पर योग्य न्याय देने की आपसे प्रार्थना करते हैं।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124