Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 82
________________ संध्या के समय अंधकार का आगमन होते हुए भी धनशेठ की श्रद्धा का दीपक और ज्यादा प्रज्वलित हुआ । गिरनार श्वेतांबरों का ही है और रहेगा ऐसी अचल श्रद्धा होने से धनशेठ ने रात्रि में तीव्र भाव से गिरनार गिरिवर की अधिष्ठायिका श्री अंबिकादेवी की आराधना की। शेठ के तीव्र सत्व और धीरता से संतुष्ट होकर श्री अंबिकादेवी प्रगट हुई। धनशेठ ने कहा "ओ मैया ! इस गिरनार गिरिवर का मालिक कौन है ? कल राजदरबार में निर्णय के अवसर पर आप पधारेंगे न ?" श्री अंबिका देवी बोली, “धीर पुरुष ! सत्य और झूठ तो क्षीर-नीर की तरह अलग हो जाते हैं। आप निश्चित रहना ! कल महाराजा विक्रम से कहना कि हमारे 'सिद्धाणं बुद्धाणं' सूत्र में गिरनार महातीर्थ का रोज स्मरण किया जाता है जिससे गिरनार पर श्वेतांबरों का ही अधिकार हैं, इस विषय में शंका का कोई स्थान नहीं है ।" सूर्योदय की सुवर्णकिरणें श्वेतांबर जैनों के सुवर्णकाल के उदय की सूचना दे रही थी । आज धनशेठ के हृदय में श्रद्धा और विश्वास का समन्वय हो चुका था। सभी राज्यसभा में गिरनार महातीर्थ के निर्णय के विषय में उत्सुकता से बैठे थे । महाराजा विक्रम ने प्रवेश किया, राज्यसभा का प्रारंभ होते ही धनशेठ ने अपनी बात शुरु की "महाराजा ! पूर्वकाल के इतिहास के अनुसार गिरनार तीर्थ अवश्य श्वेतांबरों का होते हुए भी आप आज उस इतिहास के पन्नों को देखे बिना ही बहुत ही सरलता से इस विवाद का अंत ला सकते हो। हम श्वेतांबर नित्य चैत्यवंदन में श्री गिरनार महातीर्थ का स्मरण 'सिद्धाणं बुद्धाणं' सूत्र के आलंबन से करते है। हमारे छोटे-छोटे बच्चें भी कह सकते है कि गिरनार श्वेतांबरों का है, गिरनार को हम रोज चैत्यवंदन में याद करते हैं।" इस बात को सुनकर महाराजा विक्रम अत्यंत संतुष्ट हुए और उनके हृदय में यह बात बैठ गयी। फिर भी मात्र आश्वासन के लिए वे वरुण शेठ को पूछते हैं कि, “आपको कुछ कहना है ?" वरुणशेठ वास्तविकता को सुनकर दंग रह गया। जबरदस्ती कर सके वैसी परिस्थिति नहीं थी । राजन्याय को शिरोमान्य करना अनिवार्य था । स्वयं के पक्ष के बचाव के लिए प्रस्तुति हुई परन्तु उसमें वरुणशेठ को ही आत्मविश्वास नहीं था । महाराजा विक्रम ने वरुणशेठ की प्रस्तुति को हास्यास्पद बनाकर धनशेठ की बात को मान्य रखने का निमंत्रण दिया । अब वरुणशेठ के मन में शंका उत्पन्न हुई कि यदि इनके संघ के प्रत्येक यात्रिक ने यह गाथा याद कर ली होगी तो ? ऐसी शंका से वरुणशेठ धनशेठ की बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन एक शरत के साथ। संघ के यात्रिकों के सिवाय किसी ७५

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