Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ की तरफ कदम बढाए... देखते ही देखते गिरनार के पास पहुंचते ही गिरनार पर्वत के विविध शिखरों की श्रेणीने बादशाह का मन जीत लिया। गुर्जर देश के गौरव को प्रत्यक्ष निहारकर आज वह आनंद विभोर बन गया था। चारों ओर हरियाली को निरखते हुए बादशाह के नेत्रकमल विकसित हुए । कुदरत की गोद में अचल खड़े इस गिरिवर को देखकर बादशाह हक्का-बक्का बन गया । पर्वत के सीधे चढान से वह श्री नेमिनाथ दादा के जिनालय के प्रांगण में आया । उसके तन की थकावट के साथ दिमाग का पारा भी नीचे उतरने लगा । रंगमंडप में प्रवेश करते ही श्री नेमिनिरंजन को निरखते ही बादशाह मोहित हो गया, क्या यह प्रतिमा है कि साक्षात् भगवान हैं। इसकी परीक्षा हो सकती है ? बादशाह के लगाव और बुद्धि के बीच द्वन्द्व युद्ध शुरु हुआ और अंत में बुद्धि की जीत हुई और उसने परीक्षा करने का निर्णय किया । बादशाह ने प्रतिमा की परीक्षा करने के लिए शस्त्र शक्ति का उपयोग शुरु किया और सूरिवर ने मंत्रशक्ति का उपयोग शुरु किया । सूरिवर परमात्मा के ध्यान में लीन बने और उसी समय बादशाह ने प्रभुजी की प्रतिमा पर एक के बाद एक दृढ प्रहार शुरु किए परन्तु.... अफसोस ! उसका एक भी प्रहार प्रभुजी की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाने में समर्थ न बना। एक तरफ उसका मानभंग होने से उसकी आखों से आक्रोश के अंगारे बरसने लगे और दूसरी तरफ शस्त्र प्रहार के घर्षण से उस जिनबिंब से चिनगारिया झरने लगी। बादशाह इस चमत्कार को देखकर विस्मित हो गया । ये चिनगारी यदि ज्वाला का रूप लेंगी तो मेरी देह जल जाएगी । ऐसे भय से उसने शस्त्र को जमीन पर फेंक दिया । बादशाह भयभीत बनकर सूरिजी के चरणों में झुक गया । सूरिजी ने ध्यान भंग किया और परिस्थिति को देखकर उनके हर्ष का पार न रहा । सूरिवर ने बादशाह के मस्तक पर हाथ रखकर उसके मिथ्यात्व के जहर का वमन करवाकर सम्यक्त्व के बीज का वपन किया। बादशाह दौडता हुआ प्रभु के चरणकमल में आलोटने लगा । स्वयं के किए गए दुष्कृत के पश्चात्ताप रुप माफी मांगकर परमात्मा के प्रभाव की परीक्षा करने की भूल का इकरार किया । प्रभु की गोद में मस्तक झुकाकर छोटे बालक की तरह रुदन करने लगा और थोडी देर के बाद स्वस्थ होकर प्रभु के चरणों में सुवर्ण अर्पण कर विदाई ली । बादशाह जिस दिन परमात्मा की प्रतिमा के प्रभाव का अनुभव करता है, उसी रात को उनके कुछ धर्मजनूनी अनार्य साथीदार भडक उठे और बादशाह के अनुभव किए गए प्रगट प्रभाव को नामशेष करने के लिए एक नया उपाय बनाया। ५७

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124