Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 61
________________ गिरनार महातीर्थ के अधिष्ठायक देव गिरनार महातीर्थ के अचिन्त्य प्रभाव के कारण अनेक आत्माओं ने सन्मार्ग को प्राप्त किया है । इस तीर्थ के उपकारों की अंशात्मक ऋणमुक्ति के लिए वे आत्माएँ देव बनते ही इस तीर्थ के अभ्युदय और रक्षण के कार्य में लग गए हैं । सर्वत्र तीर्थ की यश-कीर्ति फैलाने के महान कार्य में लगकर उन्होंने इस तीर्थ को जगतप्रसिद्ध बनाने के शानदार प्रयास किए हैं। * गिरनार महातीर्थ के वायव्य कोने में श्री नेमिनाथ परमात्मा को मस्तक पर धारण करके सर्व संकटों का नाश करने के लिए इन्द्र महाराजा इन्द्र नामक नगर बसाकर रहे हैं। * गिरनार महातीर्थ के डमर नामक द्वार में जिनेश्वर परमात्मा के ध्यान से पवित्र बने ब्रह्मेन्द्र ने संघ की वृद्धि के लिए अपनी मूर्ति स्थापित की। गिरनार महातीर्थ के नंदभद्र नामक द्वार में जिनेश्वर परमात्मा के ध्यान से पवित्र मनवाला मल्लिनाथ नामक बलवान देव द्वारपाल के रूप में खड़ा है। गिरनार महातीर्थ के महाबल द्वार में अपने मस्तक पर छत्र रुप किए हुए जिनेश्वर भगवान के चरणकमल से आतप रहित बनकर बलवान बलभद्र रहा है। गिरनार महातीर्थ के बकुलद्वार में लोगों के विघ्नरूप तृण के समूह को उडानेवाला महाबलवान वायुकुमार रहा है। * गिरनार महातीर्थ के बदरी द्वार में अपने शस्त्रों से विघ्नरूप शत्रुओं का नाश करनेवाला बदरीश रहा है। उत्तरकुरू द्वार में रहनेवाली सात माता देवियाँ रही हैं। * गिरनार महातीर्थ के केदारद्वार में केदार नामक देव गिरिवर का रक्षक बनकर रहा है। इस तरह आठ दिशाओं में आठ देवताओं ने निवास किया है। जिस तरह जिनेश्वर देव के पास आठ प्रतिहार्य शोभायमान होते हैं, उसी तरह आठ देवता गिरिवर के ऊपर स्वआयुध ऊँचे करके प्रतिहार्य बनकर तीर्थ की रक्षा कर रहे हैं। श्री नेमिप्रभु की सेवा के द्वारा अत्यन्त पवित्र और निर्मल बने असंख्य देवता इस महातीर्थ पर आनेवाले सभी भव्य जीवों के प्रति वात्सल्यभाव रखकर सभी के मनोरथों को पूर्ण करते हैं।

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