Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 47
________________ पंखों की पवन से जहाज चलने लगा । भीमसेन ने अपना जीवन बचाने का उपाय पूछा तो तोते ने कहा, "तू धीरज रख कर समुद्र में कुद पड ! वहाँ बड़ी मछलिया तुझे निगल जायेगी, फिर किनारे पर आकर जोर से फूंक मारेगी तब तू यह दवा उनके गले में डाल देना । उसके प्रभाव से उनके गले में एक बडा छेद हो जायेगा । उस छेद में से निकलकर तूझे जहा जाना होगा, वहाँ जा सकेगा। तोते के इस उपाय को अपनाकर भीमसेन जीने की इच्छा के साथ सिहलतट पर पहुँचा । वहाँ भूख-प्यास से परेशान, जंगल में भटकता हुआ पानी पीकर और फल खाकर, किसी एक दिशा में निकल पडा । तभी रास्ते में एक त्रिदंडी साधु को देखकर प्रणाम किया। त्रिदंडी साधु ने आशीर्वाद देकर पूछा "हे पुत्र ! तू कौन है ? इस जंगल में क्यों भटक रहा है ?" इस संसार में जितने महादुःखी, सौभाग्यरहित और निर्भागी पुरुष हैं, उन सबमें स्वयं को पहेला माननेवाला अनेक दुःखों से पीडित भीमसेन ने तपस्वी महापुरुष के दर्शन होने पर उनको अपनी दुःखद कथा कही, "अधिक तो क्या कहूँ? मैं जहाँ, जिसके वहाँ जाता हूँ, वहाँ वह वस्तु सिद्ध नहीं होती । यदि मैं प्यासा बनकर समुद्र के पास जाऊँ, तो भी जल नहीं मिलता । मैं इतना निर्भागी हूँ कि मेरे जाने से पेडों पर लगे फूल, सब नदियों का पानी और रोहणाचल के रत्न भी अदृश्य हो जाते हैं। मेरे भाई बहन, माता-पिता और पत्नी नहीं होते हुए भी मैं मेरा पेट नहीं भर सकता ।" भीमसेन के दीनवचन सुनकर कपट में निपुण त्रिदंडी मुनि आँखों में बनावटी आँसू लाकर दुःखी स्वर में बोले, "हे पुत्र ! तू दुःखी मत हो ! किसी अच्छे पुण्योदय की वजह से तू मेरी शरण में आया है, अब तेरा दारिद्र खत्म हो गया ऐसा समझ ! इस पृथ्वी पर हम परोपकार के लिए ही तो घूमते हैं। इसलिए तू मेरे साथ सिंहद्वीप चल ! वहाँ रत्नों की खान से रत्न ग्रहण करने से तेरे दु:खों का नाश हो जायेगा ।" त्रिदंडी मुनि के कपटीवचनों पर विश्वास रखकर भीमसेन उनके साथ चल पड़ा । साथ में भोजन और सौ दीनार लेकर दोनों थोडे दिनों में रत्नों की खान तक पहुंच जाते हैं। कृष्ण पक्ष की चौदस की अंधेरी रात में त्रिदंडी मुनि भीमसेन को रत्नों की खान में उतारकर रत्न निकालने के लिए कहता है । रत्न मिलते ही दुष्ट त्रिदंडी मुनि रस्सी काटकर भाग जाता है। भीमसेन खान में यहाँ-वहाँ घूमता हुआ, अत्यंत दुःखी और कृश शरीरवाले पुरुष को एक कोने में बैठा हुआ देखता है। वह पुरुष भी भीमसेन के प्रति दयाभाव बताते हुए पूछता है कि, "हे भद्रपुरुष ! इस यमराज के मुंह में तू कहाँ से आया? तू भी मेरे जैसे उस दुष्ट त्रिदंडी के द्वारा रत्न की लालच में खान में फेका गया है ?" भीमसेन ने भी इस बात को स्वीकारा ४०

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