Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 41
________________ द्वारा पूजित अनंत तीर्थंकरों के अनंत कल्याणकों की भूमि ऐसी श्री रैवतगिरि महातीर्थ की सेवा-भक्ति कर । जिनके महाप्रभाव से तेरे सारे पाप नष्ट हो जायेंगे। निष्कारणबंधु ऐसे साधु भगवंत के सद्वचनों को सुनकर रैवतगिरि महातीर्थ को हृदय में बिठाकर गोमेध अमृतरस के आस्वादन को अनुभव करता हुआ, समता सागर में तल्लीन बनकर पीडारहित मृत्यु प्राप्त करता है। उपशम रस में डूबा हुआ, महातीर्थ और परमात्मा के ध्यान में मग्न बना गोमेध महाऋद्धिमान देव बनकर यक्षों का नायक बनता है। मुनिभगवंत के मुखकमल से निकले हुए अमृतवचन के सुनने मात्र से वह अनेकविध दिव्यदृष्टि का स्वामी बनता है। परमात्मा के असंख्य गुणों का स्तवन करने के लिए तीन मुह को धारण करनेवाला, शासन के अनेक कार्यों को करने के लिए समर्थ ऐसे छ हाथों को धारण करनेवाला, जिसमें बायें तीन हाथों में शक्ति, शूल और नकुल तथा दायें तीन हाथों में चक्र, परशु और बीजोरा धारण करनेवाला, शरीर के उपर जनोई और वाहन के रूप में पुरुष को धारण करनेवाला गोमेध नामक यक्ष बनकर, शासन अधिष्ठायिका श्री अंबिका देवी की तरह और सेवकों से युक्त देवविमान में बैठकर, उसी समय रैवतगिरि महातीर्थ पर पहुंचकर परमात्मा को वंदन करता है। पूर्वजन्म में प्रभु के नामस्मरण मात्र से हुए उपकारों का स्मरण करते हुए गद्गद् स्वर में प्रभु की स्तवना करता है। उस समय इंद्र महाराजा भी उसे परमात्मा का भक्त समझकर श्री नेमिप्रभु के शासन के अधिष्ठायक देव रूप में स्थापित करते हैं।

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