Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 39
________________ इस तत्त्व को हृदयकमल में स्थापित कर जो जीव तथाभव्यत्वादि सामग्री की प्राप्ति के साथ अनंत भवभ्रमण में भटकानेवाली प्रमाद दशा का त्याग कर इस धर्मरूपी कल्पवृक्ष का सेवन करेंगे, वे जीव शीघ्र ही शाश्वत सुख के भोगी बनेंगे।" श्री नेमिप्रभु की वैराग्य झरती अस्खलित देशना श्रवण से मानों अमृत पान किया हो वैसे सर्वपर्षदा परम संतोष को प्राप्त करती है। वरदत्तराजा वैराग्य प्राप्त कर स्वयं के हजार सेवकों सहित राजवैभव के साथ दीक्षा ग्रहण कर अठारह गणधरों में मुख्य गणधर पद को प्राप्त करता हैं । यक्षिणी नामक राजकन्या प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण कर अन्य साध्वियों में प्रवतिनी पद को प्राप्त करती है। दशार्ह, भोज, कृष्ण और बलभद्रादि मुख्य श्रावक बनते हैं और उनकी पत्निया मुख्य श्राविका बनती इस तरह चार गति रूप अंधकार में दीपक समान, दान-शील-तप-भाव इन चार प्रकार के धर्मरूप गृह की नींव के समान और मुक्तिरुपी वधु के हार समान श्री नेमिनाथ परमात्मा के चतुर्विध संघ की स्थापना हुई । प्रभु के मुख से अंबिका देवी के पूर्वभव, सद्वासना, सुपात्रदानादि योग्यता को सुनकर अतिभक्तिवाले इन्द्र महाराजा ने अन्य देवताओं के आग्रह से अंबिका देवी को श्री नेमिनाथ परमात्मा के शासन के विघ्नों को नाश करनेवाली अधिष्ठायिका देवी के रूप में स्थापित किया । गोमेध नामक यक्ष जो पूर्वभव में श्री नेमिनाथ प्रभु के वचन सुनकर प्रतिबोधित हुआ था, वह इन्द्र महाराजा की प्रार्थना से श्री नेमिनाथ परमात्मा के शासन में अंबिका देवी की तरह लोगों को मनोवांछित फल देनेवाला था, उसकी शासन के अधिष्ठायक देव के रुप में स्थापना की।

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