Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 29
________________ राजा भी सज्जन मंत्री को नाम जैसे गुणवाला, शुद्ध नैतिक भावनावाला श्रावक मानकर बहुत खुश हुआ और राज्य में ऊंचा ओहदा देने का निर्णय किया । रा'खेंगार को हराकर, उसकी मृत्यु के बाद, महामंत्री बाहड के सूचन से सज्जनमंत्री को सौराष्ट्र के दंडनायक के रूप में नियुक्त किया । प्रतिभाशाली प्रज्ञावान, कार्यक्षेत्र में कुशल, दीर्घदृष्टि एसे सज्जन में कार्य करने की विशिष्ट शक्ति होने के कारण उसने अल्प अवधि में ही सोरठ की प्रजा का स्नेह प्राप्त कर लिया था । सोरठ देश के कार्यभार के लिए सज्जनमंत्री ने जूनागढ़ को मुख्यस्थान बनाया। सोरठ देशकी शान बढ़ाने के लिए उसने अनंत प्रयत्न करके सफलता हासिल की। कुछ समय बाद गिरनार, गिरिवर पर यात्रा करने का प्रसंग आया तब एकदम जीर्ण हुए जिनालयों की दुःसह्य परिस्थिति को देखा । एक के बाद एक जिनालय खंडहर बनते जा रहे हैं, यह देखकर, सज्जन बहुत ही दुःखी हो गया । महाराजा सिद्धराज की हुकुमत में जिनेश्वर परमात्मा के जिनालयों की यह हालत ! उसका मन व्यथित हो उठा । उस समय राजगच्छ के एकांतर उपवास तप की आराधना करनेवाले आचार्य भद्रेश्वरसूरि के शुभ उपदेश से, सज्जन मंत्री ने जीर्ण-शीर्ण हालत में रहे, काष्ठ के बने हुए, श्री नेमिनाथ परमात्मा के मुख्य जिनालय का, नींव के साथ संपूर्ण जिर्णोद्धार करवाने का संकल्प किया । शुभमुहूर्त पर गिरिवर के जिनालय का जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ। कशल कारीगर अपनी कला का कमाल दिखाने लगे। खंडहर होनेवाले मंदिर, महल स्वरूप बनने लगे। गिरिराज के शिखर पर टाँकने की गूंज सुनाई देने लगी। सज्जन अपनी सर्वशक्ति जिनालय के नवनिर्माण में लगा रहे थे। एक तरफ सोरठ देश का राजकार्य दूसरी तरफ जिनालय का जीर्णोद्धार ! इन दो महत्त्वपूर्ण कार्यों में सतत व्यस्त रहने वाले सज्जन को जीर्णोद्धार के लिए आवश्यक धन की चिंता सताने लगी । वे चाहते तो सौराष्ट्र के गाँव-गाँव में घूमकर अपार धन-संपत्ति इकट्ठी कर सकते थे, परंतु राज्य की जवाबदारी की वजह से यह काम संभव नहीं था । इसलिए सोरठ देश की ३ वर्ष की जो आमदनी, राजभंडार में जमा करानी थी, वह उन्होंने जीर्णोद्धार के काम में लगा दी। कुछ समय बाद सौराष्ट्र के गांव-गांव से वह रकम इकट्ठी करके राजभंडार में जमा कर देंगे, ऐसा निर्णय लेकर ७२ लाख द्रम्म जितनी रकम जीर्णोद्धार के कार्य में लगा दी। विघ्न संतोषियों को ढंढना नहीं पड़ता। गिरनार के इस सर्वोत्तम कार्य करते हुए सज्जनमंत्री के उत्कर्ष को सहन न करनेवाले लोगों ने पाटण नरेश महाराजा सिद्धराज के कान भरे । सौराष्ट्र के सज्जनमंत्री ने तीन-तीन साल से सोरठदेश की आमदनी में से एक कोडी भी राजभंडार में जमा नहीं की है, जरूर दाल में कुछ काला है। ऐसी जूठी शंका पैदा करके सिद्धराजा को

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