Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 10
________________ गिरनार वंदनावली (राग : अरिहंत वंदनावली । मंदिर छो मुक्ति...) १. बे तीर्थ जगमा छे वडा ते, शत्रुजयने गिरनार, ६. अज्ञान टाळी भव्यजनना, ज्ञानज्योत जलावतां, एक गढ समोसर्या आदिजिनने, बीजे श्री नेमि जुहार; "स्वस्तिकावर्तक" प्रासादने, भरतचक्री करावतां, ए तीर्थ भक्तिना प्रभावे, थाये सौनो बेडोपार, जेमां माणिक्य रत्नने वळी, स्वर्णबिंबो भरावतां, ए तीर्थराजने वंदता, पापो बधां दूरे जता..... ए गिरनारने बंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) २. गत चोवीसीमां जे भूमिओ, सिद्धिवधूजिनदस वर्या, ७. प्रासादनी प्रतिष्ठा काजे, गणधरो पधारतां, ने आवती चोवीसी मांहे, सौ जिनो शास्त्रे कह्यां; हर्षे भरेलां इन्द्रो पण, ऐरावण पर आवतां; ए गिरनारना गुणघणा पण, अंशथी शब्दे वण्या, हस्तिपादे भक्तिकाजे, गजपदकुंड करावतां, ए गिरनारने वंदता, पापो बधां दूरे जतां.... (२) ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) ३. नंदभद्र, गिरनार, स्वर्णगिरि, ने शाश्वतो रैवत मळी, ८. त्रण भुवननी सरितातणा, सुरभि प्रवाह ते झीलता, उज्जयंत, कैलास, एम करीने छ आरे नामो धरी; जे जल फरसतां आधि-व्याधि, रोग सौना क्षय थतां; उत्सर्पिणीले शतधनुथी, छत्रीस योजन बनी, ते जल थकी जिन अर्चता, अजरामरपद पामता, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां.... (२) ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) ४. अप्सराओ ऋषिओ, वळी सिद्धपुरुषने गांधर्वो, ९. देवताओ उर्वशीओ, यक्षोने विद्याधरो, . आ तीर्थकेरी सेवा काजे, आवतां सौ भविजनो; वळी गांधर्वो स्वसिद्धि काजे, तीर्थनी स्तवना करे; घेरबेठां पण तस ध्यान धरतां, चोथे भवे शिवमुख लहो, ज्यां सूर्य-चंद्र विमान विरामी, हर्षथी स्तवना करे, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) त्रण त्रण कल्याणक भाविकाळे, नेमिजिनना ज्यां जाणी, १०. ज्यां देवांगनाना गानमां, आसक्त मयूरो नाचतां, भरतेश्वरे रचना करावी, "सुरसुंदर" मंदिर तणी; पवने पूरेल वेणुने, झरणांओ सूरने पूरता; शोभती जेमां प्रभुनी, मणिमय मूरत घणी, ज्यां वायुवेगे विविधवृक्षो, नृत्य करतां भासतां, ए गिरनारने बंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२)

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