Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 20
________________ उस समय प्रभु कहते हैं कि "हे इन्द्र ! तिर्च्छालोक की तरह देवलोक मे अशाश्वती प्रतिमा नही होती इसलिए आप उस प्रतिमा को यहाँ लाओ ।" प्रभु की आज्ञा से इन्द्र शीघ्र उस मूर्ति को ले आए। कृष्ण महाराजा ने हर्ष से पूजा करने के लिए वह मूर्ति प्रभु से ली। सुर-असुर और नरेन्द्र श्री नेमिनाथ प्रभु को वन्दन करके उनके मुख से रैवताचलगिरि का माहात्म्य सुनने लगे । प्रभु कहते हैं कि - यह रैवताचलगिरि पुंडरिक गिरिराज का सुवर्णमय पाँचवाँ मुख्य शिखर है, जो मन्दार और कल्पवृक्ष आदि उत्तम वृक्षों से लिपटा हुआ है। यह महातीर्थ हमेशा झरते हुए झरनों से भव्य जीवों के पापों का प्रक्षालन करता है। इसके स्पर्श मात्र से हिंसा के पाप दूर हो जाते हैं । * सभी तीर्थ की यात्रा के फल को देनेवाले इस गिरनार के दर्शन और स्पर्शन मात्र से सर्व पाप नाश होते हैं। * इस गिरनार तीर्थ पर आकर जो न्यायोपार्जित धन का सद्व्यय करते हैं, उन्हें जन्मोंजनम संपत्ति की प्राप्ती होती है I * जो यहाँ आकर भाव से जिनप्रतिमा की पूजा करते हैं, वे मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं, तो मानवसुख की तो बात ही क्या करनी ? * जो यहाँ सुसाधु को शुद्ध अन्न, वस्त्र और पात्र वहोराते है, वे मुक्ति रूपी स्त्री के हृदय को आनंदित करते हैं | * इस रैवतगिरि पर स्थित वृक्ष और पक्षी भी धन्य और पुण्यशाली हैं, तो मनुष्यों की तो बात ही क्या करनी ? * देवता, ऋषि, सिद्धपुरुष, गंधर्व और किन्नरादि हमेशा इस तीर्थ की सेवा करने आते हैं । * गिरनार पर रहे हुए गजपद कुंड आदि अन्य कुंडों का अलग-अलग प्रभाव हैं, जिसमें मात्र ६ महीने स्नान करने से प्राणियों के कुष्ठादि रोग नाश होते हैं। इस प्रकार बालब्रह्मचारी श्री नेमिनिरंजन के मुखकमल से गिरनार तीर्थ की महिमा सुनकर पुण्यशाली सुर-असुर और नरेश्वर आनंदित होते हैं । उस अवसर पर श्री कृष्ण वासुदेव प्रश्न करते हैं, "हे परम करुणासागर ! यह प्रतिमा जो मेरे प्रासाद में स्थापित करवानी है, वह वहाँ कितने समय तक रहेगी ? इसके बाद इसकी कहाँ-कहाँ पूजा होगी ?" १३

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