Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 21
________________ प्रभु कहते हैं, "जब तक द्वारिकापुरी रहेगी तब तक यह प्रतिमा तुम्हारे प्रासाद में पूजी जाएगी। उसके बाद कांचनगिरि पर देवताओं के द्वारा इसकी पूजा होगी । मेरे निर्वाण के २००० वर्ष के बाद अंबिका देवी की आज्ञा से उत्तम भावनावाला रत्नसार नामक वणिक एक गुफा में से प्रतिमा को रैवतगिरि के प्रासाद में बिराजमान कर, पूजा करेगा । बाद में १,०३,२५० वर्ष तक यह प्रतिमा वहा रहकर फिर वहा से अदृश्य होगी। उस समय दुषम-दुषम काल का छठा आरा प्रारंभ होते ही अधिष्ठायिका अंबिकादेवी उस जिनबिंब को पाताललोक में पूजेगी । अन्य देवता भी उसकी पूजा करेंगे । वर्तमान काल में बिराजमान गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ भगवान के अद्भुत इतिहास को जानकर सार यह निकलता है कि यह प्रतिमा अतीत चौवीशी के तीसरे सागर तीर्थंकर परमात्मा के काल में पांचवें ब्रह्मलोक देवलोक के ब्रह्मेन्द्र द्वारा भरवायी गयी है। इस कारण से भरतक्षेत्र में वर्तमान मे सबसे प्राचीनतम प्रतिमा मानी जाती है। श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा की प्राचीनता का काल : अतीत उत्सर्पिणी के प्रथम आरे के २१००० वर्ष + दूसरे आरे के २१००० वर्ष + तीसरे आरे के ८४२५० वर्ष के बाद सागर तीर्थंकर हुए इसलिए २१०००+२१०००+८४२५० = १२६२५० वर्ष व्यतीत होने के कुछ वर्षों के बाद ब्रह्मेन्द्र द्वारा प्रतिमा भरवायी हुई होगी । इस कारण से अतीत उत्सर्पिणी के १० कोडाकोडीसागरोपम में १२६२५० से कुछ अधिक वर्ष न्यून काल अतीत उत्सर्पिणी का हुआ । १२६२५० वर्ष न्यून १० कोडाकोडी सागरोपम में वर्तमान अवसर्पिणी काल के १० कोडाकोड़ी सागरोपम काल में से छडे आरे के २१००० वर्ष तथा पाँचवें आरे के शेष १८४८४ वर्ष कम करने पर ३९४८५ वर्ष न्यून इस अवसर्पिणी काल की प्राचीनता का होता है। इसीलिए - १२६२५० वर्ष न्यून १० कोडाकोडी सागरोपम + _३९५८५ वर्ष न्यून १० कोडाकोडी सागरोपम १६५७३५ वर्ष न्यून २० कोडाकोडी सागरोपम वर्तमान श्री नेमिनाथ परमात्मा की प्रतिमा १६५७३५ वर्ष न्यून २० कोडाकोडी सागरोपम वर्ष प्राचीन है।

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