Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 11
________________ ११. गुफाओमां साधको वळी, मंत्रोने आराधता, नवरंध्रोथी प्राणोने रोधी, परमर्नु ध्यान ध्यावतां; वळी विविध योगासनो वडे जे, योग साधना साधतां ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १२. स्वर्णमणि माणिक्यरत्नो, सृष्टिने अजवाळतां, दिवसे मणीरत्नो वळी औषधो रात्रे दीपता; ने कदलीओना ध्वजपताका, अनंत वैभवे शोभतां, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १३. आ तीर्थ भूमि पक्षीओनी, छाया पण आवी पडे, भवभ्रमण केरां दुर्गतिना, बंधनो तेनां टळे; महादुष्टने वळी कुष्टरोगी, सर्वसुख भाजन बने, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १४. आ तीर्थपर जे भावथी, अल्प धर्म पण करे, आ लोकथी परलोक वळी, ते परमलोकने जई वरे जे तीर्थनी सेवा थकी, फेरा भवोभवना टळे, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १५. नेम आव्या जान जोडी, परणवा राजुल घरे, पशुओतणा पोकार सुणी, ते नेमजी पाछा फरे; वैराग्यना रंगे रमेने, शिववधू मनने हरे, .. ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १६. सहसावने वैभव त्यजी, दीक्षा ग्रहे राजुलप्रभु, युद्ध आदरी चोपनदिने, कर्म करे ते लघु; आसो अमासे चित्रा काळे, कैवल्य पामे जगविभु, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १७. सुरवंद नाचे हर्ष साथे, भावथी त्रणगढ रची, वरदत्त-यक्षिणीवळी, दशाहने तसश्री मळी; तीर्थथापनाने करी, गौमेध यक्ष अंबा भळी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १८. सागर प्रभुना काळमां, अतीत चोवीसी मही, ब्रह्मेन्द्रे निजभावि जाणी, नेमनी प्रतिमा भरी; गणधर प्रभुना ए थया, वरदत्त शिववधू धणी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) १९. आर्य-अनार्य पृथ्वी पर, प्रतिबोधतां विचरण करे, निर्वाणकाळ समीप जाणी, रैवते प्रभु पाछा फरे; अनशनग्रही अषाढ मासे, शुभाष्टमे सिद्धि वरे, ओ गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) २०. अल्पमति मनमां धरीने, भाव अपार हैये भरी, संवंत सहस्त्र युगलने, संवरतणा वरसे वळी; वर्षान्तमासे शुभ्रपडवे, शब्दो तणी गुंथणी करी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२) २१. गिरनार महिमा आज गायो, शत्रुजय महातमथी लई, प्रेम - चंद्र - धर्म पसाये, हेम सूरोने ग्रही; हर्षित बन्या नरनारी सौ, अद्भूत गरीमाने सुणी, ए गिरनारने वंदता, पापो बधा दूरे जतां. (२)

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