Book Title: Buddha Vanso
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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रतन चकमन कण्ड
महाकस्सपो पिच थेरो उतत्तकनकसन्निभो धूतगुणे अग्गनिक्खित्तो थोमितो सत्थुवणिणतो ॥५९॥ दिब्बचक्खूनं यो अग्गो अनुरुद्धो महागणी आतिसेट्ठो भगवतो अविदूरे व तिट्ठति ॥ ६०॥ आपत्ति - अनापत्तिया सतिकिच्चाय कोविदो विनये अग्गनिक्खित्तो उपालि सत्थुवणिणतो ॥ ६१ ॥ सुखुमनिपुणत्थपतिविद्धो कथिकानं पवरो गणी इसिमन्नानिया पुत्तो पुण्णो नामाति विस्सुतो ॥६२॥ एतेसं चित्तम् अञ्ञाय ओपम्मकुसलो मुनि खखच्छेदो महावीरो कथेसि अत्तनों गुणं ॥ ६३ ॥ चत्तारो ते असङ्खेय्या कोटि येसं न जायति सत्तकायो च आकासो चक्कवाळा च अनन्तका बुद्धजाणं अप्पमेय्यं न सक्वा एते विजानितुं ॥६४॥ किं एतं अच्छरियं लोकेयं मे इद्धि - विकुब्बनं अजे वहू अच्छरिया अब्भुता लोमहंसना ॥ ६५ ॥ यदाहं तुसते काये सन्तुसितो नामहं तदा दससहस्सी समागम्म याचन्ति पञ्जलि ममं ॥ ६६ ॥ कालो देव महावीर उप्पज्ज मातु कुच्छियं सदेवकन् तारयन्तो वुज्झस्सु अमतं पदं तुसिता काया चवित्वान यदा ओक्कमि कुच्छियं दससहस्सी लोकधातु कम्पित्थ धरणी तदा ॥ ६८ ॥ यदाहं मातु कुच्छितो सम्पजानो व निक्खभि साधुकारं पवत्तन्ति दससहस्सी पकम्पथ ॥ ६९ ॥ ओक्कन्ति मे समो नत्थि जातितो अभिनिक्खमे सम्बोधियं अहं सेट्ठो धम्मचक्कप्पवत्तने ॥७०॥ अहो अच्छरियं लोके बुद्धानम् गुणमहन्तता दससहस्सी लोकधातु छव्विकारं पकम्पथा ! ॥७१॥ ओभासो च महा आसि अच्छेरं लोमहंसनं भगवा च तम्हि समये लोकजेट्ठो नरासभो ॥७२॥ सदेवकं दस्सयन्तो इद्धिया चकमि जिनो चकमे चदकमन्तो व कथेसि लोकनायको ॥७३॥
॥६७॥
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