Book Title: Buddha Vanso
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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२ ].
दीपकरो
अनासवा वीतमला सन्तचित्ता समाहिता कोलितो उपतिस्सो च अग्गा हेस्सन्ति सावका ॥६७।। आनन्दो नामुपट्टाको उपट्टिस्सति तं जिनं खेमा उप्पलवण्णा च अग्गा हेस्सन्ति साविका ॥६८॥ अनासवा वीतमला सन्तचित्ता समाहिता बोधि तस्स भगवतो अस्सत्थो ति पुवच्चति ॥६९।। चित्तो च हत्थाळवको अग्गा हेस्सन्त उपट्ठका नन्दमाता च उत्तरा अग्गा हेस्सन्तुपट्टिका ॥७॥ इदं सुत्वान वचनं असमस्स महेसिनो आमोदिता नरमरू: बुद्धबीजकुरो अयं ॥७॥ उक्कुट्ठिसद्दा वत्तन्ति अप्पोठेन्ति हसन्ति च कतञ्जली नमस्सन्ति दससहस्सी सदेवका ॥७२॥ यदिमस्स लोकनाथस्स विरज्झिस्साम सासनं अनागतम्हि अद्धाने हेस्साम सम्मुखा इमं ॥७३॥ यथा मनुस्सा नदि तरन्ता पटितित्थं विराज्झिय हेद्वातित्थे गहेत्वान उत्तरन्ति महानदि ।।७४॥ एवं एवं मयं सब्बे यदि मुञ्चामिमं जिनं अनागतम्हि अद्धाने हेस्साम समुखा इमं ॥७५॥ दीपङकरो लोकविद् आहुतीनं पटिग्गहो मम कम पकित्तेत्वा दक्खिनं पदं उद्धरि ॥७६।। ये तत्थासुं जिनपुत्ता सब्बे पदक्खिणं अकंसु मं देवा मनुस्सा असुरा च अभिवादेत्वान पक्कम् ॥७७॥ दस्सनं मे अतिक्कन्ते ससङधे लोकनायके सयना वुट्ठहित्वान पल्लङकं आभुजि तदा ॥७८॥ सुखेन सुखितो होमि पामुज्जेन पमोदितो पीतिया च अभिसन्नो पल्लङकं अभुजि तदा ॥७९॥ पल्लङकेन निसीदित्वा एवं चिन्तेसहं तदा वसीभूतो अहं झाने अभिज्ञासु पारमिङगतो ॥८०॥ सहस्सियम्हि लोकम्हि इसयो नत्थि में समा असमो इद्धिधम्मेसु अलभि ईदिसं सुखं ॥८१।। पल्लङकाभुजने मयहं दससहस्साधिवासिनो महानन्दं पवत्तेसु धुवं बुद्धो भविस्ससि ॥८२॥
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