Book Title: Buddha Vanso
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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बुद्धवंसो
सारिपुत्तो महापञ्ञ समाधिझानकोविदो गिज्झकूटे थितो एव पस्सति लोकनायकं ॥ ४३॥ सुफुल्लं सालराजं व चन्दं व गगने यथा मज्झन्तिके व सुरियं ओलोकेति नरासभं ॥ ४४॥ जलन्तं दापरुक्खं व तरुणसुरियं व उग्गतं ब्यामप्पभानुरञ्जितं धीरं पस्सनि नायकं ॥४५॥ पञ्चन्नं भिक्खुसतानं कतकिच्चानं तादिनं खीणासवानं विमलानं खणेन सन्निपातयि ॥ ४६ ॥ लोकप्पसादनं नाम पाटिहीरं निदस्सयि अम्हे पि तत्थ गन्त्वा वन्दिस्साम मयं जिनं ॥४७॥ एथ सब्बे गमिस्साम पुच्छिस्साम मयं जिनं कखं विनोदयिस्साम पस्सित्वा लोकनायकं ॥ ४८ ॥ साधू ति ते पटिसुत्वा निपका संवुतिन्द्रिया पत्तचीवरं आदाय तरमाना उपागमं ॥ ४९ ॥ खीणासवेहि विमलेहि दन्तेहि उत्तमे दमे सारिपुतो महापञ्ञ इद्धिया उपसङकमि ॥५०॥ तेहि भिक्खूहि परिवृत्तो सारिपुत्तो महागणी ललन्तो देवो गगने इद्धिया उपसङकमि ॥५१॥ उक्कासित च खिपितं अज्झुपेक्खित्वा सुब्बता सगारवा सप्पटिस्सा सम्बुद्धं उपसंकमुं ॥५२॥ उपसङकमित्वा पस्सन्ति सयम्भुं लोकनायकं नभे अच्चुगतं धीरं चन्दं व गगने यथा ॥५३॥ जलन्तं दीपरुक्खं व विज्जू व गगने यथा मज्झन्तिके व सुरियं पस्सन्ति लोकनायकं ॥ ५४ ॥ पञ्चभिक्खुसता सब्बे पस्सन्ति लोकनायकं
रहदम इव विप्पसन्नं सुफुल्लं पदुमं यथा ॥ ५५ ॥ अञ्जलिं पग्गहेत्वान तुट्ठट्ठा पमोदिता नमस्समाना निपतन्ति सत्थुनो चक्कलक्खणे ॥५६॥ सारिपुत्तो महापञ्ञ कोरण्डसमसादिसो समाधिज्ञानकुसलो वन्दति लोकनायकं ॥ ५७ ॥ गज्जितो कालमेघो व नीलुप्पलसमसादिसो saबलेन असमो मोग्गलानो महिद्धिको ॥५८॥
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