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[ १३ ]
उद्धारकरें (फिरसे दीक्षालेवे)तो उनकी यतिपनकी अशुद्धपरंपरा छु. टकर जिमगुरुके पासमें क्रिया उद्धार किया होगा, उन्हीं गुरुकीशुद्ध परंपरा चलेगी । इसी तरहसे श्रीवडगच्छके जगचंद्रसूरिजी महाराजने अपनेको व अपनी गच्छ परंपराको शिथिलाचारी अशुद्ध जानकर छोडदियाथा और श्रीचैत्रवालगच्छके शुद्ध परंपरावाले शुद्ध संयमी श्रीदेवभद्रोपाध्यायजीके पासमें क्रिया उद्धार कियाथा,अर्थात्-उनके शिष्य होकर शुद्ध संयमी बने थे. और उसके बादमें बहुत तपस्या करनेसे 'तपा' विरुद मिलाथा, उस रोजसे इन महाराजकी समुदायवाले तपगच्छके कहलाये गये. इसलिये श्रीदेवेंद्रसूरिजीमहाराजने और श्री क्षेमकार्तिसूरिजी महाराजने श्रीजगचंद्रसूरिजीमहाराजकी पहिलेकी शिथिलाचारकी वडगच्छकी अशुद्ध परंपरा लिखना छोडकर; इनमहाराजकी चैत्रवाल गच्छकी शुद्ध परंपरा अपनी बनाई 'धर्मरत्न प्रकरण वृत्ति' में और 'श्रीबृहत्कल्प भाग्य वृत्ति' में लिखीहै. यही शुद्ध परंपरा लिखना जिनाशानुसार है, मगर पहिलेकी वडगच्छकी अशुद्ध परंपरा लिखना जिनाशानुसार नहींहै.यह बात अल्पशभी अच्छी तरहसे समझसकताहै. जिसपरभी अभी वर्तमानि क तपगच्छके विद्वान् मुनिमंडल देवेंद्रसूरिजी वगैरह महाराजोंकी लिखी हुई जिनाशानुसार चैत्रवालगच्छकी शुद्ध परंपराको छोड देते हैं.और जिनाशाविरुद्ध शिथिलाचारी वडगच्छकी अशुद्ध परंपराको लिखते हैं. यह सर्वथा शास्त्र विरुद्ध है. इन सर्व बातोंका विस्तार पूर्वक खुलासा इस ग्रन्थके उत्तरार्द्ध में लिखा गयाहै. सोभी छपकर तैयार होगयाहै, इस पूर्वार्द्धके प्रकट हुएबाद, थोडे समयसे उत्तराईभी प्रकट होगा, सो संपूर्ण तया वांचनेसे सर्व निर्णय हो जावेगा.
विद्वान् सर्व मुनिमंडलसे विनति. श्रीमान-विजयकमलसूरिजी, विजयधर्मसूरिजी, विजयनेमिसूरिजी, बुद्धिसागरसूरिजी, विजयवीरसूरिजी, विजयनीतिसूरिजी विजयसिद्धिसूरिजी, आनंदसागरसूरिजी, उ०इन्द्रविजयजी, प्र० श्री कांतिविजयजी-मंगलविजयजी, पं० गुलाबविजयजी-धर्मविजयजीकेशरविजयजी-दानविजयजी-मणिविजयजी- अजितसागरजी, श्री हंसधिजयजी-कपूरविजयजी-वल्लभविजयजी-कल्याणविजयजी-लब्धिविजयजी-आनंदविजयजीआदि विद्वान्सर्व मुनिमंडलसेविनति.
आप यह तो जानतेहीहै, कि-श्रीनिशीथचूर्णिमें वर्षाऋतुमेही मु.
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