Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
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[११] विदितयोग-योग के ज्ञाता | प्रभु सम्यग् दर्शन ज्ञान-चारित्र्यरूपी योग को जानने वाले नयया ध्यानीजनो ने जिनसे योग जाना है લકતામર *
ऐसे अथवा विशेष करके दित:-नाश किया है, योगः-जीव के साथ क्षीरनीर के न्याय से रहा हुमा कर्मबन्ध जिसके ऐसे है । भ AR [१२] अनेक-ज्ञान के कारण सर्व में रहे हुए होने से अनेक मथवा गुण और पर्याय अनेक होने से भनेक अथवा ऋषभादि अनेक yw- व्यक्ति होने से अनेक अथवा नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप में होने से अनेक है। [१३] एक-अद्वितीय उत्तम अथवा एक जीव पाया की अपेक्षा से एक है । [१४] ज्ञानस्वरूप-ज्ञानमय केवबज्ञान के स्वरूप वाले है। [१५] अमल-निर्मल अठारह दोषरूपी मकरहित
- है-इस प्रकार सत्पुरुष आपको कहते है। *दि:- “ॐ ही अर्ह णमो दिद्वि-विसाणं" 1. मक्ष * :- ॐ नमो भगवते वद्धमाणसामिस्स सर्वसमीहितं कुरु कुरु स्वाहा । ॐ हाँ ही हूँ हौ * हः असि आ उ सा झौ झौ स्वाहा । ४१ अक्षरी ॐ....परम.... पान॥ २८ ॥ -- भ.aata * (माजी यानी) ALAN on-on५. स्तवन-२१. ज्ञान स्वरूपी संत कहावे, तुंही ब्रम्हा तुंही ईश्वर, योगीश्वर जगदीश
सुहावे-ज्ञान. १ अव्यय अविनाशी तूं असंख्य, आदि अनंत अचित्य घरावे, एक भनेक महस अगोचर, अंगमनंग सही तुं हगवे- ज्ञान. २ तीन भुवन में तं हि देवा, लोकालोक सदा दरसाचे, निर्मल ध्यान समाधि जगावे, परम दशा सोइ आतमपावै - ज्ञान. ३
तुम, सल्यय, मथित्य, मय, विशु, छ, २, सनत, सनतु :
ગીશ્વર, વિદિતાગ, અનેક એક, કે હું તને વિમળ જ્ઞાન સ્વરૂપ સંત. ૨૪ પ્રભુ આ૫ આદિ, અસંખ્ય ને અચિંત્ય અવ્યય નાથ છે, અનંત બ્રહ્મા આપ ઈશ્વર કામ કેરા કેતુ છે; વળી એકને અને તે છે યોગી તણા તમ નાથ છે, જ્ઞાની મહા છે વેગમાં વળી જ્ઞાન કેશ રૂપ છે. ૨૪
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