Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
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હા ઉપરી તે ભય જ બાપડો ભયભીત થતે લપાતો છુપાતો નાશ પામશે. પ્રભુ! મારા આ ભયે તે ભલે દૂર કરે
*॥१७॥ भागता ५५ भारत र २१छ. an (1) राम...मान....थान (२) ..शिने () माया...सपने ભકતામર (४) शन... युद्धने (५) 04-रघुनाममा
वा ५२ (६) सारने भडाय
पार
पाछे. (७) निवारको छेसा समन. (4) पीछे रे। नेना नी. सम! मारे
पाशतभाशा ...! भावार्थ :- ाठी सर्व भयों के नाशकारक प्रभु की स्तुति - जो बुद्धिमान् लोग आपके इस स्तोत्र का निरन्तर पाठ करते हैं, उनका (१) मदोन्मत्त हाथी, (२) सिंह, (३) दावानल, (१) सर्प, (५) युद्ध, (६) समुद्र, (७) जलोदर और (८) बन्धन इन आठ - जि.नका पूर्वक्ति आठ श्लोकों में पृथक् पृथक रूप से वर्णित
भयमी भयमीत होता है। यहां भय का नाश करनेवाले होने से तीर्थकर मी अन्य देव की तरह इस भव संबंधी सुख को देनेवाले हैं ऐसे E नही मान ले परन्तु भगवान के स्मरण से अधिष्ठायक देव सन्तुष्ट होकर प्राणियों के मनोरथ सिद्ध करते हैं। क्योंकि भगवान के
ध्यान का मुख्य फल तो मोक्ष ही हैं। इसके सिवाय अन्य फल गौण ॥३॥ 4 0 y२२५२ वृत्तिमा ४३
भनी म छ- भयभेत्तृत्वादैहिकार्थकृत्त्वादन्यसुरवत् । तीर्थकृदपीति न चिन्त्यम् । यतो बुद्धस्य सिद्धस्य क्षीणकर्मणो भगवतः स्मरणात् तुष्टाः सद्भक्तसुराः ।
सर्वमथ सम्पादयन्ति, वीतराग ध्यानान्मुक्तिरेव मुख्यं फलम् अन्यत् प्रासङ्गिक, कृषेः पलालवदिति ॥ - *दि :- ॐ ही अहूं णमो सिद्धिदायाणं वह्रमाणाणं १६ MAN मत्र:- ॐ नमो हाँ ही हूँ
हो हः यः क्षः श्री ही फट् स्वाहा ॥ १५ ॥६॥ ॐ....परम.... I २८ ॥ मन्ने म-ata .
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