Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
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શ્રી કરયાણ મન્દિર મહાયક पूरान
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'आपको मिलने के लिये एक भिक्षु चार श्लोक हाथमें रखकर आया है वह आए या जाए ?' राजाने कहलाया 'दस लाख स्वर्ण मुद्राएँ और चौदह हार्थी मैं उन्हें अर्पण करता हूँ अब उसे आना हो तो आए और जाना हो तो जाए।' फिर सूरि ने राजा के पास जाकर अनुक्रम से चार श्लोक बोले। उन्हें सुनकर राजा ने एक २ श्लोक के लिये एक २ दिशा का राज्य देने का संकल्प किया, परन्तु आचार्य ने उसे स्वीकार न कर इतनी ही मांग की कि 'नव भी मैं आऊं आप मेरा घरिदेश सुनें । राना ने यह बात स्वीकार की। एक दिन वे सरि महाकाल के मन्दिर में जाकर शिवलिंग पर पांच रख कर सो गए। यह देखकर अनेक शिव भक्त जन क्रुद्ध हुए भौर ऊन्हें वहां से ऊठाने के लिये बहुत प्रयत्न करने कगे' परन्तु सूरि तो वहां से नही ऊठे । अंत में भक्तजनों ने नाकर राजा को निवेदन किया । यह सुनकर राजा ने उन्हें बलपूर्वक भी मन्दिर से बाहर निकालने का मादेश दिया। राजाज्ञा प्राप्त कर राजसेवक उनके पास पहूंचे परन्तु उनके कहने पर मी सूरि वहां से नहीं उठे। तब राजसेवक उन्हें कोरों से पीटने लगे। परन्तु वे प्रहार सूरे को न लगकर राना की रानियों को लगने लगे। इससे अन्तःपुर में बडा कोलाहल हुमा । यह जानकर राजा माश्चर्यचकित होकर महाकाल के मन्दिर में गया। वहां सूरि को पहिचान कर राजा ने कहा - 'मह महादेव तो पूज्य हैं फिर भी आप उन पर पांव क्यों रखे हुए है ! सूरि बोले - 'यह महादेव नही है, महादेव तो अन्य ही है मतः ये देव मेरे द्वारा कृत स्तुति को सहन नहीं कर सकेंगे। राजा ने कहा - 'तब भी आप इसकी स्तुति करें ।' तब सूरि बोले - 'तो ठीक है, मैं स्तुमे करता हूँ। आप सावधान होकर सुनें ।' यह कहकर सूरि ने कल्याण मन्दिर स्तोत्र की रचना शुरु की। इसमें ग्यारवां लोक बोले कि पृथ्वी कापायमान हुई. धुंआ निकला और शिवलिंग फटकर उसमें से धरणेन्द्र सहित पार्श्वनाथ स्वामी की महा तेजस्वी प्रतिमा प्रकट हुई। भाचार्य ने स्तोत्र सम्पूर्ण कर राजा को कहा - 'यहां भद्रा सेठानी का पुत्र अवंति सुकुमान अनशन करके कायोत्सर्ग में रहकर, कालधर्म को प्राप्त कर नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न हुआ था।