Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
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॥२८॥
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वि:
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ન સ્તોત્રકારે આઠ-ભય ર કરનારા શ્લોકે આ છે. - હે મુનીશ્વર ! હું માનું છું કે - આ અપાર સંસાર રૂપી દયાણુ
સમુદ્રને વિષે ભ્રમણ કરતાં મેં કદાપિ તારા નામનું શ્રવણ કર્યું નહિ હોય કારણ કે તમારે નામ રૂપ પવિત્ર મંત્ર મદાર
સાંભળવામાં આવ્યો હોત તો શુ વિપત્તિરૂપી સર્પિણી કદાપિ પાસે આવી શકે ? ન જ આવે - બા કનકકુશલ ગણિ Mera त्तिमा मे छे ? - हे मुनीश ! अतिविस्तीर्ण-संसार-समुद्रे-मे श्रवण गोचरतां न गतोऽसि । पून
तव नाम पावनमन्त्रो श्रतेसति विपद नायास्यदित्यर्थः।। भावार्थ - अब आठ श्लोकों के द्वारा स्तोत्रकार विज्ञप्ति करते हैं - * हे मुनीश्वर ! मैं मानता हूं कि इस अपार संसार रूपी समुद्र में भ्रमण करते हुए मैं ने कदापि आपके नाम का अवण नहीं किया
होगा, क्यों कि यदि आपका नामरूप पवित्रमंत्र सुनने में आए, तो क्या विपत्ति रूपी सपिणी कदापि पास आ सकती हैं ? अर्थात् नहीं मा सकती। हे प्रभु ! अमी तक मेरी सांसारिक मापत्तियों का नाश नहीं हुआ है। इससे मैं सोचता हूँ कि आपका नाम अबतक मैंने किसी भी भव में नहीं सुना होगा। यदि सुना होता तो संसारभ्रमणरूप यह आपत्ति मुझे नहीं घेरती ॥ (३५)
- ॐ नमो अरिहंताणं जम्ल्यूँ नमः। ॐ नमो सिद्धाणं इम्ल्यूँ नमः। ॐ नमो आयरियाणं सम्व्यूँ नमः। ॐ नमो उवज्झायाणं मल्ल्यूँ नमः। ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं छम्ल्ठ्यूँ * नमः। देवदत्तस्य संकटमोक्षं कुरु कुरु स्वाहा । ७११६॥ ॥ ॐ ही आपन्निवारकाय श्री जिनाय * * नमः । १५ अक्ष॥ *दि - ॐ ही अर्ह णमो मिजलिजणासए । १3 MAN ॥ मन्त्र- ॐ * नमो भगवति मिगियागदे अपस्मारे रोगे शान्ति कुरु कुरु स्वाहा । २६ ६ ॥
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