Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
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Hanuary वृत्तिमा छ है - यथा अमृतपानेऽजरामरत्वं प्राप्यते तथा तव वचनश्रवणेऽप्य- २५७। seum जरामरत्वं प्राप्यते अतस्तव वागमृतमेवेति श्रोतारो युक्तमेव जल्पन्ति । भावार्थ - दिव्यध्वनि नामक तृतीय_ મદિર
प्राविहार्य का वर्णन - हे स्वामिन् । गंभीर हृदय रूपी समुद्र से उत्पन्न हुई आपकी वाणी को पंडित ममता कहते हैं। मापका મહામત્ર पून
वाणी अमृत ही है ऐसा कहते हैं - वह योग्य ही है क्यों कि भव्य प्राणी भापको उस वाणी का पान करके अर्थात् प्रोत्र द्वारा
श्रवण करके परमानंद का अनुभव प्राप्त कर शीघ्रता से अजरा पर होता है। इसी प्रकार आपकी वाणी का पान करने वाले प्राणी * चिदानंद का अनुभव करके सिद्धि पद को प्राप्त करते हैं ॥ (२१) मत्र- ॐ अरिहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय, । सव्वसाहूणं सव्वधम्मतित्थयराणं, ॐ नमो भगवईए सुअदेवयाए संतिदेवयाए सव्वपवयणदेवयाणं * दसण्हं दिसापालाणं चउण्हं लोगपालाणं ॐ ही अरिहंत देवाणं नमः । ८६ ४१N ॥ ॐ ही , * अजरामर दिव्यध्वनि प्रातिहार्योपशोभिताय श्री जिनाय नमः । २६ ४६ ॥ *l - ॐ ही* * अर्ह णमो अखिगदेणासए। १३ ४६॥ मन्त्र- ॐ ही श्री* क्ली* क्षों क्षी* नमः।
maN ॥ ॐ....परम....अवन्ति.... पाना २२३ ना बन्ने भनी भी al) MEAN on m५. (૨૦) સુગુણ સુજ્ઞાની સાહિબ સુગુણ સુરાની, ૫રમપુરૂષ પ્રભુ પુરિસાદાણી. સા. ૫ અમીયસમાણી જાણી તુમચી - વાણી, યુકતવયણ કહે એહ પ્રમાણી. સા. ૨ - ગંભીર ખીર જલનિધિ જાતા, સકા સમયમાં જેહ ને
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