Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 708
________________ भगवती ____टीका--'एवं जहा ओहियाणि सन्निपंचिंदियाणं सत्त सयाणि भणियाणि' एवं यथा औधिकानि से ज्ञपञ्चेन्द्रियाणां सप्तशतानि प्रथमम् औधिकम्, द्वितीय कृष्णलेश्यम् २, तृतीयं नीललेइयम् ३, चतुर्थ कापोठलेश्यम् ४, पञ्चमं तेजोले. श्यम् ५, षष्ठं पदमलेश्यम् ६, सप्तमं शुक्ललेश्यम् ७, एवंरूपाणि औधिक संक्षिपञ्चेन्द्रियसम्बन्धीनि चत्वारिंशत्तमशतकस्य प्रथम द्वितीयत्तीयचतुर्थपष्ठ. सप्तमरूपाणि शतानि भणितानि-कथितानि ‘एवं भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायवाणि' एवं भवसिद्धिकैरपि सप्तशतानि कर्तव्यानि तत्र प्रथममौधिक भवसिद्धिशतम् १, द्वितीयं कृष्णलेश्यभवसिद्धिकशतम्, तृतीयं नीललेश्यमवसिद्धिकशतम् ३, चेतित्रयं भवसिद्धिकशतं पूर्व कथितम्, अस्मिन् सूत्रे तु टीकार्थ-जैसे संज्ञि पंचेन्द्रियों के सम्बन्ध में सात औधिक शतक कहे गये हैं। वैसे ही संज्ञि पंचेन्द्रिय भवसिद्धिकों के सम्बन्ध में भी सात शतक कह लेना चाहिये औधिक संज्ञि पंचेन्द्रियों के वे सात शतक इस प्रकार से हैं-औधिकशत १, कृष्णलेश्वशत २, नीललेश्य शत ३, कापोतलेश्यशत ४, तेजोलेश्यशत ५, पद्मश्यशत ६, और शुक्ललेश्यशत ७, इस प्रकार से ये संज्ञि पचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में ४० वें शतक में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, पष्ठ और सप्तम शत रूप से कहे गये हैं । इसी प्रकार से 'भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायमचाणि' भवसिद्धिक जीवों के सम्बन्ध में भी सात शत कह लेना चाहिये । इन में प्रथम औधिक भवसिद्धिक शत है १ द्वितीय कृष्णलेश्य भवसिद्धिक शत है । तृतीय नीललेश्य भवसिद्धिक शत है। ये तीन भवसिद्धिक शत तो पहिले कहे जा चुके है। इस सूत्र में तो સંગ્નિ પંચેન્દ્રિયના સમ્બન્ધમાં સાત ઔધિક શતકે કહેલા છે, એજ પ્રમાણે સંગ્નિ પંચેન્દ્રિય ભવસિદ્ધિઓના સંબંધમાં પણ સાત શતકે કહેવા જોઈએ. સંજ્ઞિ પંચેન્દ્રિયોને તે સાત ઔવિક શતકે આ પ્રમાણે છે.–ઔધિક શતક કૃષ્ણલેશ્યા શતક ૨ નીલેશ્યા શતક ૩ કાતિલેશ્યા શતક તે જેતેશ્યા શતક પ પધલેશ્યા શતક ૬ અને શુકલેશ્યા શતક ૭ આ રીતે આ ઔધિક સંસી પંચેન્દ્રિય જીવોના સંબંધમાં ચાળીસમા શતકમાં પહેલા, બીજા, ત્રીજા, ચેથ', પાંચમાં, છઠા અને સાતમા શતક રૂપથી કહે છે. એ જ પ્રમાણે 'भवसिद्धिएहि वि सत्तखयाणि कायवाणि' ससिद्धिMवाना समां પણ સાત શતકે કહેવા જોઈએ. તેમાં પહેલું ઔઘિક ભવસિદ્ધિક શતક છે. ૧ બીજ ક્લે ભવસિદ્ધિક શતક છે. ત્રીજુ નલલેશ્ય ભવસિદ્ધિક શતક છે. આ ત્રણ શતકે તે પહેલા કહેલા છે. આ સૂત્રમાં તે કેવળ કાપત, તેજ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812