Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 763
________________ प्रका टीका श०४१ उ५-८ है. राशियुग्मक. नैरयिकोत्पत्तिः त्रि तत्र जहा नेरइयाणं' मनुष्याणामपि तथैव ज्ञातव्यं यथैव नारकाणामुपपाता दिकं कथितमिति । 'आय अजसं उपजीवंति' मनुष्या आत्मनऽयशः असंयममुपजीवन्तीति विशेषो वक्तव्यः । 'अलेस्सा अकिरिया पोत्र भवग्गहणेण सिज्झति एवं न भाणियच्वं' अश्या अक्रिया स्तेनैव भरग्रहणेग सिद्रयन्ति इत्येवमत्र कृष्णलेपप्रकरणे नो भणितव्यं कृष्णलेश्यानाम लेइयत्वस्याक्रियत्वस्य तद्भवसिद्धेवाभावा दिति भावः । ' सेसं जहा पढमुद्देसए' शेषं कथितव्यतिरिक्त सर्वं यथा प्रथमदेश के कथितं तथैवात्रापि ज्ञातव्यमिति । 'सेवं भंते । सेवं भंते ! त्ति' तदेव भदन्त ! तदेव भदन्त ! इति ॥ ४११५ ॥ पञ्चमोद्देशकः समाप्तः ॥ ४१|५|| ७३१ 'मणुस्सा वित जहा नेरइयाणं' नारकों के जैसे उपपात आदि कहे गये हैं वैसे ही वे मनुष्यों के भी जानना चाहिये। 'आय अजसं उवजीवंति' मनुष्य आत्मा के संघका आश्रम करते हैं। 'अलेस्सा अकिरिया तेणेव भवग्गहणेण दिज्झति एवं न भणियन्नं' ये या रहित होते हैं क्रिया रहित होते हैं, उसी भव से सिद्ध होते हैं यह सप यहां कृष्णलेश्य के प्रकरण में नहीं करना चाहिये। क्योंकि कृष्णलेश्यावालों में अव अक्रियत्व और तद्भवसिद्धत्व का अभाव रहता है । 'सेसं जहा पढमुद्देशए' नाकी का और सब कथन प्रथम उद्देशक में जैसा कहा गया है वैसा ही है ऐसा जानना चाहिये | 'सेच भते ! सेव भंते! त्ति' इन पदों का अर्थ जैसा पहिले कहा गया है वैसा ही है । ॥ पंचम उद्देशक समाप्त हुआ- ४१-५॥ 'मनुस्सा वि तहेव जहा नेरइयाण' नारहीना संग धभां के प्रमाणे उपयात વિગેરે કહેવામા આવેલ છે, એજ પ્રમાણે મનુષ્યેાના સ ખધમાં પણ સમજવુ 'आय अज्र वजीवंति' मनुष्य असंयम आत्मानो आश्रय ने उत्पन्न थाय छे 'अलेस्सा अकिरिया देणेव भवग्गणेण सिझांति एवं न भाणियन्त्र' मा લેશ્યા વિનાના હોય છે, ક્રિયાવિનાના હૈય છે, એજ ભવમા સિદ્ધ થાય છે, આ સઘળું કથન અહિયાં આ દૃશ્યાના પ્રકરણનું ન કરવુ જોઇએ. કેમકે -કૃષ્ણલયાવાળામાં અલેયાપણાને અકિયપણાને તદ્ભવસિદ્ધપણુાને અભાવ २ छे. 'सेस जहा पढमुद्देस' डीनु सधण् प्रथन रहे પ્રમાણે કહેવામા આવેલ છે. એજ પ્રમાણે સમજવુ જોએ, शमां के 'सेव भवे ! सेव' भवे ! चि' से लगवन् य धन सर्वधा सत्य વિગેરે પહેલા કહ્યા પ્રમાણે આ પદે ને અર્થ સમજવે. ૫પાંચમે ઉદ્દેશે સમાપ્ત ૪૧-પા

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