Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 766
________________ ७३४ भगवतीचे ॥ 'अह ९-१२ उद्दे पगा॥ मूलम्-जहा कण्हलेस्लेहिं एवं नीललेस्लेहिं वि चत्तारि उद्देसमा झाणियवानिरवसेला। नवरं उववाओ नेरइयाणं जहा बालुयप्पमाए सेसं तं चेव । सेवं भले ! सेवं भंते !त्ति ॥९-१२॥ ___ छाया--यथा कृष्णलेश्य एवं नीललेश्यरपि चत्वार उद्देशका भणितव्या निरवशेषाः । नारमुपपातो नैरथिकाणां थथा बालु काममायाम् । शेपं तदेव । तदेवं भदन्त । तदेव भदन्त ! इति ।।९-१२।। टीका-'जहा कण्टलेसेहि एवं नीललेस्सेहिं वि चत्तारि उद्धे सगा भाणियन्या निरवसेसा' यथा-कृष्णलेश्यनारकाणां चत्वार उद्देशकाः कधिवा स्तथैव नीलछेश्यैरपि चत्वार उद्देशकाः कृतयुग्म-योज-द्वापर-बल्योज पदविशिष्टा भणितव्याः निरवशेषाः । 'नवरं नवरं-केवलम् 'नेरइयाणं उवमानो जहा वाल्यप्पभाए' कृष्णलेश्यप्रकरणापेक्षया इदं वैलक्षण्यं यदेपां नारकाणामुपपातो यथा वालुकासेव मते ! ति इन पदों की व्याख्या पूर्व में की गई व्याख्या के ही जैसी है। आठवां उद्देशक समाप्त हुआ।४१-८॥ ॥ शतक ४१ उद्देशक से १२ तक। 'जहा कण्हलेसेहिं एवं नीललेम्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियया निरवलेला' इत्यादि । टीकार्थ-जिस प्रकार से कृष्णलेश्यावालों के सम्बन्ध में पूर्वोक्तरूप से चार उद्देशक कहे गये हैं, उसी प्रकार से नीललेश्यावालों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक कह लेना चाहिये । 'ल उववाओ नेरइ. चाणं जहा बालु पप्पभाए' परन्तु यहां पर नारकों का उपगत बालुका'सेव भंते ! सेव भते ! त्ति' मा पानी ०याभ्य! पहेला हा प्रभाएं ४ छे. આઠમો ઉદેશે સમાપ્ત થ૪૧-૮ નવમા ઉદ્દેશથી બારમા સુધીના ચાર ઉદ્દેશાઓને પ્રારંભ– 'जहा कण्हलेस्सोहि एवं नीललेस्से हिं वि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्या निरवसेसा' त्याहि ટીકાર્ય–જે પ્રમાણે કૃષ્ણલેશ્યાવાળાઓના સંબંધમાં પૂર્વોક્ત પ્રકારથી ચાર ઉદ્દેશા કહેવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણે નલલેવાવાળાના સંબંधमा ५ यार शाय। वाले 'नवर उववाओ नेरइयाणं जहा वालुयप्पभाए' પરંતુ અહિયાં નારકેને ઉપરાત વાલુકા પ્રભામાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ

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