Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 780
________________ ७४८ भगवतीसूत्र 'तेउलेस्से हि वि चत्तारि उलगा ओहियसरिसा तेजोलेल्यैरपि तेजोलेश्य भवसिद्धिकासुरकुमारादिकरपि चत्वार उदेशका औधिकसदृशाः कर्तव्याः ।। पञ्चचत्वारिंशत्तमात् अष्टचत्वारिंशत्तम्पर्यन्ता उद्देशकाः समाप्ताः ॥४५-१८॥ ___ 'पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा' पनलेश्यामाश्रित्यापि पदमलेश्य भवसिद्धिक तिर्यक् पञ्चेन्द्रियादिकमाश्रित्यापि कृतयुग्मादिरूपा श्चत्वार उद्देशकाः कर्तव्याः । एकोनपञ्चाशत्तमाद् द्विपश्चागत्तमपर्यन्ता उद्देशका समाप्ताः १४९-५२ ‘एवं काउलेस्लेहि वि चत्तारि उद्देसमा कायवा' इत्यादि । इसी प्रकार से कापोतलेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक करने योग्य होते हैं। इन प्रशार ४१ वें उद्देशक से लेकर ४४ में उद्देशक तक के ४ उद्देशक ४१ शतक में समाप्त हुए। ४१, ४१-४४॥ 'तेउलेस्सलिंधि चत्तारि उनिगा ओहिय सरिसगा' इत्यादि। तेजोलेश्य भवसिद्धिक असुरकुमारादिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक औधिक उद्देशक के जैसे करने योग्य होते हैं । इस प्रकार ४५ वे उद्देशक से लेकर ४८ वे उद्देशक तक के ४ उद्देशक ४१ वे शतकके समाप्त हुए। ४१, ४५-४८॥ 'पहलेसेहिं वि चत्तारि उद्देसमा इत्यादि पदमलेश्य भवसिद्धिक तिर्यपंचेन्द्रियादिलों को लेकर भी कृतयुग्मादिरूप चार उद्देशक कर लेना चाहिये । इस प्रकार ४९ वे उद्देशक से लेकर ५२ वे उद्देशक तक दे ४ उदेशक ४१ वे शतक में समाप्त हुए ४१, ४९-५२।। 'तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उसगा ओहिय सरिसगा' त्या ટકાર્ય–તે જેતેશ્યા ભવસિદ્ધિક નાવિકોના સંબંધમાં પણ ચાર ઉદ્યશાઓ ઔવિક ઉદ્દેશાના કથન પ્રમાણે કહી લેવા જોઈએ. આ રીતે પિસ્તાળીસમા ઉદ્દેશથી લઈને અડતાળીસમા ઉદ્દેશા સુધીના ચાર ઉદેશાઓ સમાપ્ત ૪૧-૪૫ થી ૪૮ 'पम्हलेस्सहि वि चत्तारि उदेखगा' त्यादि ટીકાથ–પમલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક તિર્યકુ પરિને લઈને પણ કૃતયુમ વિગેરે રૂપે ચાર ઉદેશાઓ બનાવીને સમજી લેવા. આ રીતે ઓગણપચાસમાં ઉદ્દેશાથી પર બાવન સુધીના ચાર ઉદેશાઓ સમાપ્ત ૫૪૧-૪૯-થી પરા

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