Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 787
________________ , प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४१ उ.७३-७६ रा. कृ. तेजोभवसिद्धिकोत्पत्तिः ७५५ 'पम्हलेस्से हि वि चत्तारि उद्देसगा' पद्मलेश्यैरपि चत्वार उद्देशकाः पदमवेश्या घटिताऽभवसिद्धिक राशियुग्म कृतयुग्म व्योज द्वापायुग्म कल्योज नारकाणामपि चत्वार उद्देशकाः कर्तव्याः ॥७७-८०॥ 'मुक्कलेस्स अभवसिद्धिए हि वि चत्तारि उदेसगा' शुक्ललेश्याऽभवसिद्धि 'तेउलेस्से हिं वि चत्तारि उद्देसगा' राशियुग्म में कृतयुग्मादि प्रमाण प्रमित तेजोलेश्यावाले अभवसिद्धिक नैरथिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक बनते हैं। ऐसा जाननाचाहिये । इस प्रकार ७३ वें उद्देशक से लेकर के ७६ ३ उद्देशक तक के चार उद्देशक ४१ वें शतफ में समाप्त हुए। ४१, ७३-७६॥ __'पम्हलेस्सेहिं वि चत्तारि उद्देसगा' इत्यादि ७७-८०॥ 'पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा' पदमलेश्यावाले अभवसिद्धिक नैरयिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक बनते हैं-अर्थात् राशियुग्म में कृतयुग्म प्रमाण, योज प्रमाण, द्वापरयुग्म प्रमाण और कल्योजप्रमाण प्रमित पदूमलेश्यावाले अभवसिद्धिक नैरयिकों के चार उद्देशक बनते हैं, ऐसा जानना चाहिये । इस प्रकार ७७ वें उद्देशक से लेकर ८० वें उद्देशक तकके चार उद्देशक ४१ वें शतक में समाप्त हुए ४१,७७-८०॥ 'सुक्कलेस्स अभवसिद्धिएहिं वि चत्तारि उद्देसगा' इत्यादि। ट –'तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा' राशियुम्भमा तयुग्म विगेरे પ્રમાણુવાળા નીલેશ્યાવાળા અભાવસિદ્ધિક નૈરયિકેના સંબંધમાં પણ ચાર ઉદ્દેશાઓ થાય છે, તેમ સમજવું. આ રીતે ૭૩ તેતરમાં ઉદ્દેશાથી લઈને ૭૬ છેતરમાં ઉદ્દેશા સુધીના ચાર ઉદ્દેશાઓ સમાપ્ત ૪૧-૭૬ થી ૭૬ 'पम्हलेसेहि चत्तारि विदेसगा' त्याह टीआय-'पम्हलेस्सेहि चत्तारि वि उदेसगा' पद्मश्यावा सिद्धि નરયિકના સંબંધમાં પણ ચાર ઉદ્દેશાઓ થાય છે. અર્થાત-રાશિયુમમાં કૃતયુગ્મ પ્રમાણે, એજ પ્રમાણ દ્વાપરયુગ્મ પ્રમાણ અને કલ્યાજ પ્રમાણ પ્રમિત પમલેશ્યાવાળા અભાવસિદ્ધિક નરયિકના ચાર ઉદ્દેશાઓ બને छे, तम समरपु. આ રીતે સતેરમાં ઉદ્દેશાથી લઈને ૮૦ એંસીમા ઉદ્દેશા સુધીના ચાર देशास। समारत ॥४१-७७-८०॥ 'सुक्कलेस्स अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उहेसगा' या

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