Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 717
________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४० अ. श.१५ प्रथममभवसिद्धिकमहायुग्मशतम् ६८५ अथ द्वितीयोदेशकः प्रारभ्यते'पढम समय अमवसिद्धिन बडजुम्मकडजुम्म सन्निपंचिदियाणे भरो ! को उववज्जति' प्रथमसमयाभत्रसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्मसंज्ञपश्चन्द्रियाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते किं नैरयिकेभ्यो यावदेवेभ्य इति प्रश्नः। उत्तरमाह अतिदेशद्वारेण-'जहा' इत्यादि, 'जहा सन्नीणं पढमसमयउदेसर तहेव' यया संझिनां प्रथमसमयोद्देशके तथैव त यैव प्रथमशनकस्य द्वितीयोदेश के कथितं तथैवोपपातादिकं सर्व ज्ञानव्यमिति । पूर्वापेक्षया द्वैलक्षण्यं तदर्शयति-'नवरं' इत्यादि, 'नवरं सम्मत्तं सम्मामिच्छत्तं नाणं च सव्वत्थ नत्यि' नारं सम्यक्त्वं सम्यगमिथ्यात्वं ज्ञानं च न सन्ति, एतावान् एव पूर्वापेक्षया मेः 'सेसं तहेव' 'पढमसमय अभवसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्म सन्निपंचिंदियार्ण भंते !' टोकार्थ-हे भदन्त प्रथमसमयवर्ती अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म राशिप्रमित संज्ञी पश्चेन्द्रिय जीव किस स्थानविशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरथिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं? अतिदेशद्वारा इसका उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं-'जहा सन्नीणं पढमलमय उद्देसए तहेव' हे गौतम ! जैसा इसी के प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक में कहा गया है वैसा ही उपपात आदिक सब कथन यहां जानना चाहिये। परन्तु यहां सम्घवत्व, सम्पग्मिथ्यात्व और ज्ञान ये नहीं है । यही घात'नवरं सम्मत्तं सम्मामिच्छत्तं नाणं च सव्वस्थ नत्थि' 'इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। इस अन्तर के अतिरिक्त और सब कथन प्रथमसमय मी हेशानी प्रार-- 'पढमसमय अभवसिद्धिय कहजुम्म कडजुम्म सन्निपंचिदियाण भते 15 ટીકાઈ–હે ભગવન પ્રથમ સમયમાં રહેવાવાળા અભાવસિદ્ધિક કૃતયુગ્મ કૃતયુગ્મ રાશિપ્રમાણવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય જીવે કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? શું તેઓ નૈયિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા તિય ચોનિકેથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેમ થી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? मातहेश द्वारा सा प्रश्न उत्तर माता प्रसुश्री ४ छ है-'जदा सन्नीगं' पडमसमय उद्देसए तहेव' है गौतम ! मा याजीसमा शतना पसरा सन મહાયુમ પહેલા શતકના બીજા ઉદ્દેશામાં જે પ્રમાણે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે કહેલ છે. એજ પ્રમાણે ઉપપાત વિગેરે સઘળું કથન સમજવું. પરંતુ અહિયાં રાત સમ્યક્ મિથ્યાત્વ અને જ્ઞાન એ હેતા નથી એજ વાત “નવર

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