Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 751
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४१ उ.२ राशियुग्म योजनरथिकोत्पत्तिः ७१९ प्रश्नः, उत्तरमाइ-'एवं चेव उद्देसओ भाणियबो' एवमेव प्रथम देशकवदेव द्वितीयो. देशकोऽपि भणितव्यः । प्रथमोद्देशके यथा यथा कथितं तत्सर्वमिहापि तथैव वक्त व्यमिति । प्रथमोद्देशकापेक्षया द्वितीये वैलक्षप्यं दर्शयति-'नवरं' इत्यादि, 'नवरं परिमाणं तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पंचदस वा संखेज्जा वा, असंखेचा वा उवरज्जेति' नवर परिमाणं त्रयो वा सप्त वा एकादश वा, पञ्चदश वा, संख्याता वा असंख्यातावोत्पधन्ते इति । 'संतरं तहेर' सान्तरमुत्पधन्ते निरन्तरं बोत्पधन्ते इत्यस्योत्तरं प्रथमोद्देशकवदेव ज्ञातव्यमिति । तेणं भंते ! जीवा' ते खलु मदन्त ! राशियुग्म योज जीवाः 'जं समयं तेओगा तं समयं कड जुम्मा' यस्मिन् हैं ? क्या वे नैरथिकों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'एवं चेव उद्देस मो भाणिय. व्चों हे गौतम ! इस सम्बन्ध में जेसा प्रथम उद्देशक कहा गया है उसी प्रकार से यह द्वितीय उद्देशक भी कर लेना चाहिये । परन्तु उसकी अपेक्षा जो यहां भिन्नता है वह 'नवरं परिमाण तिन्नि चा सत्त वा एकारस वा पंचदसवा संखेजाचा अखेजाचा उववज्जजति' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है-इल से यह प्रकट किया गया है कि राशियुग्म नैरयिक एक समय में तीन, अथवा सात अथवा ग्यारह अथवा पन्द्रह अथवा संख्यात अथवा असंख्पात उत्पन्न होते हैं। 'मंतर तहे' ये नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? इस सम्बन्ध में उत्तर प्रथम उद्देशक में जैसा कहा गया है અથવા તિર્ય ચનિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુબેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે અથવા દેવોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गीतमस्वामीन छ -'एवं चेव उदेसओ भाणियवो' गौतम ! ॥ स मां पडसा उद्देशामा २ अमान ४थन ४२. વામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન આ બીજા ઉદ્દેશામાં પણ કહી લેવું જોઈએ. પરંતુ પહેલા ઉદ્દેશાના કથન કરતાં આ ઉદ્દેશામાં જે ફેરફાર આવે छ, ते 'नवर परिमाण तिन्नि वो सत्त वा एकारस वा पंचरस वा सखेज्जा वा असखेज्जा वा उववज्जति' 21 सूत्रपा8 द्वारा महिया प्रगट ४२वामां आवस છે –આ સૂત્રપાઠથી એ બતાવેલ છે કે-રાશિયુમ એજ નિગથિક એક સમયમાં ત્રણ અથવા સાત અથવા અગિયાર અથવા પંદર અથવા सध्यात अथवा मन्यात 6पन्न थाय छे. 'संतर तहेव' मा ना२।। સાંતર–અંતર સહિત પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને નિરંતર પણ ઉત્પન્ન થાય છે. या विषय सधी उत्त२ ५७ शाम ४ प्रभाव रहे. 'ते न

Loading...

Page Navigation
1 ... 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812