Book Title: Bhagwati Sutra Part 17
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 719
________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श०४० अ.श.१५ प्रथममभवसिद्धिक्महायुग्मशतम् १८७ शका अन पूर्वोक्तवदेव वाच्या इति भावः । 'पढमतइय पंचमा एकगमा तत्र प्रथमहनीयपञ्चमा उदेशका एकगमाः सहशा ज्ञातव्याः 'सेसा अट्ठवि एकगमा' शेषा अष्टावपि उद्देशका एकगमाः सदृशा ज्ञातव्या।। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त इति ॥ प्रथममभवसिद्धिकमहायुग्मशतं समाप्तम् ॥ चत्वारिंशत्तमे शतके पश्चदशं संझिमहायुग्मशतं समाप्तम् ॥ शक यहां प्वाक्त जैसे ही हैं। 'पढमतस्य पंचमा एक्कगमा' इनमें प्रथम तृतीय पंचम ये तीन उद्देशक एक सरीखे गम जैसे हैं। 'सेसा अट्ट वि एक्ग मा' याकी के जो द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम और ग्यारहवा ये ८ उद्देशक हैं-वे सय एक सरीखे गमवाले हैं । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह सर्वथा सत्य ही है २ । इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार कर फिर गौतम संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये। प्रथम अभवसिद्धिक महायुग्मशत समाप्त और इस प्रकार ४० वें शतक में १५ वां संज्ञिमहायुग्मशतक समाप्त हुआ १४०-१५॥ ४ा प्रमाणे १ छे. 'पढम तइय पंचमा एकगमा' मां पडतो त्रीले भने पायमा ३५ देशास से १२मा माल1431वा छे. 'सेसा अट्ट वि एकगमा' माना २ मील, याथी, छठी सातमी, मामी, नवमी, इसमी, અને અગ્યારમે આ આઠ ઉદેશાઓ એક સરખા આલાપhવાળા છે. 'सेव भंते ! सेव भते ! त्ति' है मग मा५ हेवानुप्रिये या विषयना સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરેલ છે તે સઘળું કથન સર્વથા સત્ય જ છે, તે ભગવન આપી દેવાનુપ્રિનું સઘળું કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી તેઓને નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી તેઓ સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા ઘકા પિતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા. સૂ૦૧ પહેલું અભવસિદ્ધિક મહાયુમ શતક સમાપ્ત ચાળીસમા શતકમાં પદરચું સણિ મહાયુગ્મ શતક સમાપ્ત ૪૦-૧પ H awa

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