Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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करुणानिधान भगवान महावीर
सोलहवें भव में भगवान महावीर का जीव राजगृह नगर के राजा विश्वनन्दी के छोटे भाई के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। नाम रखा गया 'विश्वभूति'। एक बार विश्वभूति राजकीय उद्यान में अपनी रानियों के साथ वन क्रीड़ा कर रहा था तभी उसका चचेरा भाई विशाखानन्दी भी वहाँ आ पहुँचा
ठहरिये राजकुमार! आप उद्यान के अन्दर नहीं जा सकते।
अन्दर कुमार विश्वभूति अपनी रानियों के साथ क्रीड़ा कर रहे हैं।
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-2017
विशाखानन्दी इस अपमान से तिलमिला उठा। माता से मिलकर युद्ध का बहाना करके उसने विश्वभूति को उद्यान से निकलवा दिया। और स्वयं उद्यान पर कब्जा कर बैठा।।
विश्वभूति युद्ध से लौटकर उद्यान में घुसने लगा तो पता चला भीतर कुमार विशाखानन्दी क्रीड़ा कर रहा है। उसने गुस्से में आकर पास के एक विशाल कपित्थ वृक्ष पर जोरदार लात मारी। वृक्ष के फल भरभरा कर गिर पड़े। पहरेदार काँपने लगे।
देखो मेरे साथ धोखा करने वाले का मैं यही हाल कर सकता हूँ।
धिक्कार है संसार के झूठे । नाते-रिश्ते को। एक छोटी-सी बात के लिए माता-पिता भी संतान के साथ यों प्रपंच करते हैं?
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परन्तु दयावान विश्वभूति का हृदय अपने भाई विशाखानन्दी के साथ ऐसा क्रूर व्यवहार करने को तैयार नहीं हुआ।
विश्वभूति संसार त्यागकर "संभूति | स्थविर के णस श्रमण दीक्षा लेक | घोर तपस्या क लग गया।
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