Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 64
________________ करुणानिधान भगवान गौतम को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने भगवान से पूछा भन्ते ! इस अबोध किसान के मन में मुझे देखकर प्रीति जगी, परन्तु आप जैसे करूणा सागर को देखते ही वह भयभीत क्यों हो गया ? यह वही सिंह का जीव है, जिसे त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में मैंने मारा था। और मेरे सारथि के रूप में तुमने उसे सान्त्वना दी थी। इस कारण इसके हृदय में तुम्हें देखकर, प्रीति और मुझे देखकर द्वेष/भय जगा। 00000 in Education International गौतम ! यह सब पूर्व जन्मों में बंधे वैर और प्रीति का खेल है। फिर आपने मुझे इसे उपदेश देने के लिए क्यों भेजा भन्ते! पेट 00000 www गौतम ! तुम्हारे कुछ क्षणों के सत्संग से इसके मन में एकबार फिर धर्म की ज्योति जल उठी है। वह कभी न कभी ज्ञान का पूर्ण प्रकाश भी पा लेगा। तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं गया। गौतम भगवान की परोपकार दृष्टि के प्रति विनत हो गये। For Priva62 Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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