Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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करणानिधान भगवान महावीर एक बार भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी पधारे। गणधर गौतम को यह बात अटपटी और असत्य लगी। इन्द्रभूति गौतम भिक्षा लेने नगर में गये। वहाँ उन्होंने वे भगवान महावीर के पास आये, और पूछाकुछ व्यक्तियों को कहते सुना।
भन्ते ! लोग कह रहे हैं कि गौशालक [ सना तमने मंखली पत्र गौशालक
केवली और तीर्थंकर हो गया है। शाम केवली है, तीर्थंकर है। भगवान महावीर त
क्या यह बात सत्य है। से भी बढ़कर प्रभावशाली है।
गौतम ! यह सरासर मिथ्या है। मखली पुत्र गौशालक पहले मेरा शिष्य बना था। बाद में वह मिथ्या वाद का प्रचार करने लगा। वह सर्वज्ञानी नहीं छानस्थं है।
| जब गौशालक ने अपनी पोल खुलती सुनी तो वह क्रोध में धम| धमाता, लोगों के साथ भगवान महावीर की सभा में आ पहुंचा।
हे काश्यप, आप मेरे विषय में मिथ्या प्रचार कर रहे हैं। मैं मखली पुत्र गौशालक नहीं। वह मर चुका है। मैंने उसके शरीर में प्रवेश किया है। मैं कौण्डियायन गोत्रीय उदायी हूँ।
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