Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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करुणानिधान भगवान महावीर
सम्राट की नींद खुली, देखा संगीत की महफिल वैसी ही जमी है। उन्हें क्रोध आ गया। शय्यापालक को डाँटते हुए बोले
मैंने कहा था कि मुझे नींद आ जाये तो संगीत बन्द करा देना, तुमने संगीत बन्द क्यों नहीं कराया?
क्षमा करें महाराज, मैं संगीत सुनने में इतना मग्न हो गया कि ।
बन्द कराना ही भूल गया।
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सैनिकों ने शय्यापालक के कानों में खौलता हुआ शीशा भर दिया।
यह सुनकर त्रिपृष्ठ वासुदेव आग-बबूला हो गये।
अपने स्वामी की आज्ञा से भी ज्यादा इसके कानों को संगीत अच्छा लगता है। जाओ इसके
दोनों कानों में खौलता शीशा डाल दो।
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भयंकर वेदना से छटपटाते शय्यापालक'
के प्राणपखेल उड़ गये। शय्यापालक का जीव आगे चलकर ग्वाला बना, निसने भगवान महावीर के कानों में कीलें ठोंक कर अपना बदला लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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