Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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संगम ने भगवान के सिर पर हजारों टन भारी काल-चक्र छोड़ा। मेरूपर्वत को चूर-चूर कर देने वाले इस काल-चक्र के भार से भगवान घुटनों तक जमीन में धंस गये।
करुणानिधान भगवान महावीर
हे महा मानव ! मैंने आपके धैर्य और शान्ति की कठोर परीक्षा ले ली। मैं आपके एक रोम को भी चंचल नहीं कर सका, मैं हार गया अब मैं जाता हूँ।
छह महीनों तक भगवान को घोर कष्ट पहुँचाने के बाद अन्त में हारकर संगम भगवान महावीर के चरणों में नतमस्तक हो गया
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उदास होकर संगम स्वर्ग की ओर चल दिया।
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परन्तु अपने पराक्रम से महावीर वापस धरती के ऊपर आ गये और अविचल ध्यान में मग्न रहे।
संगम को जाता देखकर महावीर की आँखें नम हो गईं। उन्होंने सोचा
"मैंने संसार का कल्याण और उद्धार करने का संकल्प लिया था, परन्तु संगम ने मुझे निमित्त बनाकर घोर पापकर्मों का बंध कर लिया। जिस नाव में बैठकर संसार तिरता है, उसी नाव को पकड़ कर यह डूब गया
| इसके बाद भगवान वहाँ से विहार करके कौशाम्बी की तरफ चल दिये।
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