Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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करुणानिधान भगवान महावीर अपने साधनाकाल के बारहवें वर्ष में कौशाम्बी के उद्यान में ध्यान करते हुए भगवान महावीर ने कठोर अभिग्रह किया। US
मैं उसी कन्या के हाथ से अन्न ग्रहण करूंगा, जो एक पवित्र जीवन जीने वाली राजकुमारी हो? फिर दासी के रूप में बाजार में बिकी हो। हाथों में हथकड़ी पैरों में बेड़ियाँ हों। उसका मस्तक मुंड़ा हुआ हो। मध्यान के समय आँखों में आँसू लिये तीन दिन की भूखी प्यासी बैठी हो। उसका एक पैर घर की देहली के भीतर और एक बाहर हो हाथ में सूप हो, सूप के एक कोने में
उड़द के सूखे बाकले रखे हों।
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अभिग्रह करके कौशाम्बी नगरी में भिक्षा के लिए प्रतिदिन भ्रमण करते हुए भगवान
को पाँच महीने पच्चीस दिन बीत गये। परन्तु उनका अभिग्रह पूर्ण नहीं हुआ।
उसी समय कौशाम्बी के राजा शलानीक ने चम्पा नगरी पर अचानक आक्रमण कर दिया। सैनिकों ने चम्पा में लूटपाट की। एक स्थ सैनिक रानी धारिणी और राजकुमारी वसुमति को ले भागा। रानी धारिणी ने शील रक्षा के लिये आत्महत्या कर ली।
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