Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ करुणानिधान भगवान महावीर साधना काल का बारहवाँ चातुर्मास चम्पा नगरी में ग्वाले ने लौटकर बैलों के बारे में पूछा। भगवान मौन बिताकर भगवान छम्माणी ग्राम पधारे और गाँव के रहे। ग्वाले ने फिर पूछा किन्तु भगवान ध्यान में लीन बाहर कायोत्सर्ग ध्यान करने लगे। तभी एक ग्वाला थे| ग्वाला उत्तर न पाकर आग बबूला हो गया। आकर भगवान से बोला-1 ETWESढोंगी साधु, तेरे कान ही बाबा, मेरे बैलों फूट गये लगते हैं। ठहर की देखभाल अभी उपचार करता हूँ। करना। मैं अभी आता हूँ। NA ANMa In ग्वाला बैलों को वहाँ छोड़कर चला गया। बैल चरते-चरते आगे निकल गये। उसने कॉस नामक घास की नुकीली कील ली, आव देखा न | इस असह्य वेदना में भी न तो | ताव, श्रमण महावीर के कानों में आर-पार ठोक दी।। भगवान महावीर का ध्यान भंग हुआ और न ही उन्हें मूर्ख ग्वाले के प्रति द्वेष भाव आया। TIANS RAM • यह ग्याला प्रिपृष्ट वासुदेव का शव्या पालक था जिसके कानों में विपृष्ठ वासुदेव ने उबलता हुआ शीशा उलवाया था। cation Intemallonal For Private & Personal Use Only 54 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74