Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 42
________________ करुणानिधान भगवान महावीर महावीर झोंपड़ी में ठहरकर तप-ध्यान करने | तब आश्रमवासी तापसों ने कुलपति से शिकायत लगे। कुछ गायें आकर उनकी झोंपड़ी खाने कीलगीं। पक्षी तिनके ले जाने लगे। परन्तु आपका अतिथि श्रमण कैसा महावीर ने किसी को कुछ नहीं कहा आलसी है? पशुओं से अपनी झोंपड़ी की रक्षा भी नहीं कर पाता... |कुलपति ने महावीर से कहा से कहा-S TANLERY ANT म कुमार श्रमण ! इतनी भी क्या लापरवाही है? देखो, यह पक्षी भी अपने घोंसले की रक्षा करते हैं, आप क्षत्रिय पुत्र होकर भी अपनी कुटिया की रक्षा नहीं कर सकते। महावीर ध्यान मौन में स्थिर थे। उन्होंने सोचा जिस आत्म-दर्शन के लिए मैंने राजपाट, छोड़ा शरीर की ममता छोड़ी तो क्या अब कुटिया की रक्षा में लगूं? ......मेरे यहाँ ठहरने से आश्रम वासियों के मन को पीड़ा पहुँचती है तो चलूँ और कहीं ..... महावीर आश्रम छोड़कर जंगल में चले गये। 40 For Private & Personal use only

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