Book Title: Bhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Author(s): Purnachandramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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करुणानिधान भगवान महावीर
भगवान के शब्द सुनकर चण्डकौशिक गहरे विचारों में डूब गया। उसे अपना पिछला जन्म याद आने लगादो जन्म पूर्व चण्डकौशिक एक तपस्वी श्रमण था। एक बार शिष्य के साथ मास खमण का पारणा करने जा रहा था कि एक छोटी मैंढ़की पैर के नीचे दब गई। शिष्य ने प्रायश्चित लेने को कहा तो उसे शिष्य पर बहुत गुस्सा आया। संध्या होने पर शिष्य ने फिर प्रायश्चित लेने को कहा तो वह गुस्से में उसे मारने दौड़ा। उपाश्रय में अंधेरा था। अँधेरे में एक खम्बे से टकराकर सिर फट गया और उसकी मृत्यु हो गई।
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क्रोध के उग्र परिणामों में मृत्य प्राप्त करने के कारण अगले जन्म में अत्यन्त क्रोधी ब्राह्मण बना। एक बार उसके आश्रम में कुछ राजकुमार फूल तोड़ने आये। चण्डकौशिक हाथ में कुल्हाड़ी लेकर उन्हें मारने दौड़ा। दौड़ता-दौड़ता एक गहरे गड्डे में ना गिरा और उसी कुल्हाड़ी से उसका सिर फट गया। और वह मर गया। अत्यन्त उग्र परिणामों के साथ मरकर वह इस जन्म में खतरनाक सर्प बना।
चण्डकौशिक ने फन नीचा झुकाकर भगवान से क्षमा माँगीला
ओह ! इस महा क्रोध के कारण मेरे कितने जन्म बिगड़ गये! अब मैं क्रोध नहीं करूंगा।
क्षमा करो! हे करुणावतार जहर के बदले मुझे आपने ज्ञानरूपी अमृत पिलाकर उद्धार कर दिया।
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चण्डकौशिक नाग ने भगवान महावीर के चरणों की शरण लेकर अनशन व्रत का संकल्प ले लिया।
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