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४६. तिम ए पिण छ जेह, जीत आचार भणीज इन्द ।
दाढा ल्ये पूजेह, पिण ते धर्म खाते नथी। ४७. श्रावक सरिखा जाण, जिन दाढा लेता नथी।
इन्द्र तणांज पिछाण, एह 'जीत व्यवहार' छै । ४८. अभव्य सुर पूजंत, जिन-प्रतिमा दाढा भणी।
इन्द्र सामानिक इंत, सभा सुधर्मा छ तसु ॥ ४६. आवश्यक नी वृत्ति, ग्रंथाग्र बावीस हजार तसु।
सूरि हरिभद्र प्रवृत्ति, कह्यो सामायक वृत्ति में ॥ ५०. संगम सुधर्म वास, सामानिक ते शक नों।
वीर चलावू तास, यूं ही इन्द्र प्रशंसतो ॥
वा०- वलि सामानिक देवपण जो अभव्य मिथ्यादृष्टि जीव न ऊपजै तो तुम्हारे मतेज आवश्यक नी वृत्ति बावीस हजारी हरिभद्र सूरि नी कीधी, ते मध्ये सामायक नामा अध्ययन नी टीका में अभव्य संगम देवता नो अधिकार छ । तिहां महावीर नां उपसर्ग नै अधिकारे शकेंद्र बोल्यो-महावीर नै चलावी न सकै । तिवारे शकेंद्र नों सामानिक अभव्य देवता संगम बोल्यो-इओ य संगमओ नाम सोहम्मकप्पवासी देवो सक्कसामाणिओ अभवसिद्धिओ सो भणतिदेवराया अहो रागेण उल्लवेइ, को माणुसो देवेण न चालिज्जइ ? अहं चालेमि, ताहे सक्को तं न वारेइ । मा जाणिहिइ-परणिस्साए भगवं तवोकम्मं करेति, एवं सो आगओ-- इहां संगमो देवता शक्रेन्द्र नै सामानिक देवता ने कह्यो।
__वली 'संदेहदोलावलि' ग्रंथ छ तेहनी वृत्ति मध्ये कह्यो-नन्वेवं तहि संगमकप्रायो महामिथ्यादृष्टि देवविमानस्थाम् सिद्धायतनप्रतिमां अपि सनातनमिति चेत् न, नित्यचैत्येषु हि संगमवत् अभव्या अपि देवा मदीयमदीयमिति बहुमानात् कल्पस्थितिव्यवस्थानुरोधात् तद्भूतप्रभावाद् वा न कदाचित् असंयमक्रियां आरभन्ते।
एस संगमो देवता अभव्य कह्यो, इंद्र नों सामानिक कह्यो सामानिक देवता इंद्र सरिखा विमान नों धणी ऊपजती वेला सुरियाभ नी पर प्रतिमा दाढ़ा पूजे पोता नीं कल्पस्थिति माट। अन सुधर्मा सभा नै विषे दाढा ने मुरातबपण करी काम भोग न भोगवै ते पिण कल्पस्थिति जीत आचार माट पिण धर्म खाते नथी, तिमहिज अनेरा इन्द्र सुरियाभादिक ने जाणवू । ५१. सूत्र उववाई मांय, पूर्णभद्र बह लोक नैं।
अर्चन जोग कहाय, वन्दन पूजन योग्य वलि ॥ ५२. सतकार सनमान जोग, कल्लाणं मंगलं वली।
दैवत चैत्य प्रयोग, जाणी सेवा योग्य छ । ५३. बहु जन नैं ए ताय, कह्या पूजवा जोग ए।
आख्या जन-अभिप्राय, पिण नहिं अरिहंत आगन्या । ५४. सुर नर नै अवधार, भोग वंछवा योग्य ए। ___ चौथे आश्रव द्वार, इहां पिण जिन आज्ञा नहीं। ५५. तिम सुर – कहिवाय, दाढा पूजण योग्य ए।
कह्या तास अभिप्राय, पिण आज्ञा जिन नी नथी॥
१. महत्त्व २. सू०२
० १० उ०५, का० २२२ ३३६
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