Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 390
________________ या० - अभिषेक सभा नीं पूर्व नंदा पुष्करणी वकी नीकली, पूर्व द्वार करी अलंकारिक सभा में पैसी ने मणिपीठिका भने सिहासन मी बलि अलंकारिक भांद मी अने बहु मध्य देश भावनी अनुक्रम करिकै पूर्ववत अर्थनिका करें करीने तिहां पिग अनुक्रम करके सिद्धाय नी परं दक्षिण द्वार को लेह पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अनिका कहिवी । हिवे व्यवसाय सभा में आवं, ते कहे छं २५४ पछे जिहां सभा व्यवसाय तिहां आवं आवी सुरराय । तिमहिज पूंजणी हस्त ग्रही नैं पुस्तक रत्न प्रतै पूंजी नें ॥ २५५ दिव्य उदक धारा कर सोय, आभो सींचे मुख्य पवर गंध पुष्पमाल, तिण करि अर्चे तिण अह । २५६. मणिपीठिका प्रति पूजेह, वली सिंहासन शेष तिमहिज सर्व कहेव, पूर्व नंदा पोक्खरणी तं चैव ॥ बा०—तिवार पर्छ अलंकार सभा नीं पूर्व नंदा पुष्करणी थकी पूर्व द्वार करिकै व्यवसाय सभा में पेठो, पैसी ने पुस्तक रत्न ने मयूरपिच्छ नीं पूंजणी करी पूंजी नें उदक धारा करिकै सींची ने वर गंध माल्य करि अर्ची न तदनंतर मणिपीठिकानी अने सिंहासन नीं वली बहु मध्य देश भाग नीं अनुक्रम करिकै पूर्ववत अनिका करें। तदनंतर सिहां पिन सिद्धायतन नी परे दक्षिण द्वार भी लेई पूर्व नंदा पुष्करणी पर्यवसान अनिका की अवलोय । काल ॥ २५७. पूर्व नंदा पुष्करणी थी ताय, जिहां वलिपीठ छै तिहां आय । बलि विसर्जन करे तिवार, उगर्या ते वाना मूकै सार ॥ वा०- पूर्वोक्त बत्तीस वाना कह्या ते पूजतां पूजतां जे कोई वस्तु चंदण फूलादिक उगर्या हुवै ते वलिपीठ ने विषे विसर्जन करें - मूकं । २५८. प अभियोगिक देव तसु तेड़ावी ततदेव । इह विघ बोलं सुरराय हे देवानुप्रिय ! शीघ्र जाय ।। २५९. सुधर्मावतंस विमान तेह विमान विषे पहिछान । जे सिंघाड़ा ने आकार, त्रिकोण स्थान जे उदार ॥ २६०. त्रिक ज्यां तीन वाट मिलंत, चक्क ते ज्यां मिले चिहुं पंथ । वली चच्चर जे कहिवाय बहु वाट मिले जिहां आय || २६१. बलि जिहां थकी अवलोय, नीसरे चिहुं पंच उदार ३७४ भगवती-जोड़ चिहुं तसुं Jain Education International कहेह | २६२. महापथ राजपंथ विषेह, शेष सामान्य पंथ प्राकार तिको गढ जोय, अट्टालग बुरजां अवलोय ॥ दिश ने विषे पिग सोय । कहिये चतुर्मुख सार ॥ वा - ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतः पूर्वद्वारेणालङ्कारिकसभां प्रविशति प्रविश्य मणिपीठिकायाः सिंहासनस्य अलंकारभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदर्चनिकां करोति तत्रापि प्रमेय सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका वक्तव्या । ( वृ० प० २६६ ) २५४. जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता .....सोमहत्व परामुसद्द परामुमिता पोत्यवरयणं सोमहत्वपूर्ण म ( राय० सू० ५६४ ) २५५. दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता''''' अग्गेहि वरेहि य गंधेहिं मल्लेहि य अच्चे, अच्चेत्ता ( राय० सू० ५६४ ) २५६. मणिपेयिं च सीहाराणं च लोमहत्वपूर्ण पमज्जइ, पमज्जित्ता पुष्कार। For Private & Personal Use Only (राय० ० ५९५) वा० - ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतः पूर्वद्वारेण व्यवसायसभां प्रविशति प्रविश्य पुस्तकरत्नं लोमहस्तकेन प्रमृज्य उदकधारया अभ्युक्ष्य चन्दनेन चर्चयित्वा वरगन्धमाल्यं रचवित्वा पुष्पाद्यारोपणं दाधूपनं च करोति, तदननारं मणिपीठिकायाः सिहासनस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदनिकां करोति तदनन्तरमन्त्रापि सिद्धायतनवत् दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका (२००२६०) २५७. जेणेव बलिपीढे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलिविसज्जणं करेइ । (राम० सू० ६५४) वक्तव्या । २५८. आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भी देवाणुप्पिया ! ( राय० सू० ६५४ ) .....विमाणे सिंघाडएसु २५६. (राय० ० ६५४) गाटक:श्रृंगाटकाऽऽकृतिपथयुक्तं त्रिकोणं स्थानम् (राय० वृ० प० २६७ ) २६० तिर टक्के पच्चरे (राय० ० ६५४) त्रिकं - यत्र रथ्यात्रयं मिलति चतुष्कं चतुष्पथयुक्तं चत्वरं बहुव्यापात्तस्थान (राय० ० ० २६७ ) २६१. उम्मु (राय० सू० ६५४ ) चतुर्मुखं - यस्माच्चतसृष्वपिदिक्षु पन्थानो निस्सरन्ति ( राय० वृ० प० २६७ ) २६२. महापहपहेसु पगारेसु अट्टालएसु ( राय० सू० ६५४ ) महापथः -- राजपथः शेषः सामान्यः पन्थाः प्राकार: प्रतीतः अट्टालकाः प्राकारस्योपरिनृत्याचयविशेषाः ( राय० वृ० प० २६७ ) - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490