Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 448
________________ ४५. *पोसी पूनम उत्कृष्ट थी रे, मुहर्त अठारै रात । ___ द्वादश मुहूर्त नों कहै र, जघन्य दिवस जगनाथ ।। ४६. छै भगवंत ! दिवस निशा जी, सरिखा निश्चै होय ? हंता अस्थि जिन कहै रे, अछै सरीखा जोय ।। ४७. सरिखा दिवस अनैं निशा जी, किण काले जगनाथ ! जिन कहै चैत्र आसोज नी रे, पूनम सम दिन रात ।। सोरठा ४८. पूनम चैत्य आसोज, नय ववहार अपक्षया । न्याय दृष्टि कर सोझ, वृत्तिकार आख्यो इसो।। ४६. निश्चय थकी निहाल, कर्क मकर संक्रांति नां । दिवस थकी इम भाल, आरंभीजे आगले ।। ५०. अहो रात्रि अवलोय, साढा एकाणं विषे । दिवस रात्रि सम होय, पनर महत्तं दिन फून निशा ।। ५१. मुहर्त पूणां च्यार, दिवस तणी इक पोरसी। निशि न पिण' अवधार, मुहर्त पूणां च्यार नी ।। वा०-ए संक्रांति नु न्याय वृत्ति में लिख्यु तिम कह्य अने सूर्य सवार ३६६ दिन नों हुवै । तेहना बार भाग ते १२ मास । तिहां बारमों भाग साढा तीस दिन नो ते एक मास हुवै । सर्वाभ्यंतर मंडले सूर्य आवै तिवारे अठार मुहूर्त नों दिवस वारै मुहूर्त नी रात्रि हुवै । तिका तिथि ए सूर्य संवच्छर नी आसाढी पूर्णिमा जाणवी। तेहथी साढा एकाणुमें अहोरात्रे सूर्य संबच्छर नी आसोजी पूर्णिमा जाणवी। तिवारे दिन रात्रि सम हुवै अनै सर्व बाह्य मंडले सूर्य आवं तिवारै १२ मुहूर्त नों दिवस १८ मुहूर्त नी रात्रि हुवे । तिका तिथि सूर्य संवच्छर नों पोसी पूर्णिमा जाणवी। तेहथी साढा एकाणुमें अहोरात्र तिका तिथि ते सूर्य संवच्छर नी चैत्री पूर्णिमा जाणवी । तिवारं दिन रात्रि सम हवै, ए निश्चय नय न मत का। ५२. *काल-प्रमाण ए आखियो र, पछ सुदशण फर। यथायुनिर्वत्ति-काल स्यू जी ? जिन कहै सुण चित घेर ।। ५३. नारक तिरि मनु देवता रे, जितो बांध्यो आयु न्हाल । अंतमुहर्त आदि दे , यथायुनिर्वृति काल ।। ४५. पोसपुण्णिमाए णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ। (श० ११११२३) ४६. अत्थि णं भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवति ? हंता अस्थि । (श० ११२१२४) ४७. कदा ण भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति ? सुदंसणा ! चेत्तासोयपुण्णिमासु एत्थ णं दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति। ४८. चत्तासीयपुन्निमाएसु ण' मित्यादि यदुच्यते तद् व्यवहारनयापेक्षं । (वृ०प०५३४) ४६. निश्चयतस्तु कर्कमकरसंक्रान्तिदिनादारभ्य (वृ० ५० ५३४) ५०. पण्णरसमुहुत्ते राई भवइ। चउभागमुहुत्तभागूणा चउमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ । यद् द्विनवतितममहोरात्रं तस्यार्द्ध समा दिवरात्रिप्रमाणतेति, तत्र च पञ्चदशमुहूर्त दिने रात्री वा पौरुषीप्रमाणं त्रयो मुहूर्तास्त्रयश्च मुहूर्तचतुर्भागा भवन्ति, दिनचतुर्भागरूपत्वात्तस्याः। (व०प०५३४) ५४. मरण-काल प्रभु ! स्यू कह्यो जी, जुदा शरीर थी जीव । तथा जीव थकी तनु ह जुदो रे, मरण-काल ते कहीव ।। ५२ सत्त पमाणकाल । (श० ११११२५) से किं तं अहाउनिवत्तिकाल? ५३. अहाउनिव्वत्तिकाले-जण्णं जेणं नेरइएण वा तिरिक्खजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण वा अहाउयंनिव्वत्तियं । सेत्तं अहाउनिव्वत्तिकाले। (श० ११११२६) ५४. स कि त मरणकाले? मरणकाले-जीवो वा सरीराओ सरीरं वा जीवाओ। मत्तं मरणकाले। (श० ११११२७) वा०-वा शब्दौ शरीरजीवयोरवधिभावस्येच्छानुसारिताप्रतिपादनार्थाविति । (वृ० प० ५३५) ५५. से कि तं अद्धाकाले ? अद्धाकाले अणेगविहे पण्णत्ते । (पा० टि० ७) वा०-अन सूत्र में दोय वार वा शब्द त शरीर जीव नै विष अवधि भाव नी इच्छा अनुसारीपणो जणायवा नै अर्थे । ५५. अद्धा-काल प्रभु स्यू कह्यो जी, जिन कहै अनेक प्रकार । समयट्ठयाए पाठ नों जी, आगल अर्थ उदार ।। *लय : राजा राणी रंग थी रे ४३२ भगवती-जीड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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