Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 458
________________ मेवग यावत वच अंगीकर, राय कह्यो तिम जान ए, करी करावी आण संपी, कृष्णागर प्रधान ए ॥ तए णं कोडंबियपुरिसा जाव' 'करेत्ता य कारवेत्ता य सीहासणं गत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति । (श० ११११३७) १४. तए णं से बले राया पच्चूसकालसमयसि सयणि ज्जाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, अट्टणसालं अणुपविसइ, जहा ओववाइए (सू०६३) तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे वा०-यथौपपातिकेऽट्टणशालाव्यतिकरो मज्जनगृहव्यतिकरश्चाधीतस्तथेहाप्यध्येतव्य इत्यर्थः (वृ० प०५४२) १५. जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीयित्ता अप्पणो उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवत्थपच्चत्थुयाई १४. इह अवसर नृप मनरली, दिन उगज प्रभातो जी, सेज थकी ऊठी करी, रू. चित रलियातो जी। रलियात चित्ते पायपीठ थी, ऊतरी में नरपती, अट्टण ते व्यायामशाला, आवियो तिहां हरष थी। कह्य उववाइ विषे तिम, अट्टणसाल थी नीकली, तिमज मंजन घरे मंजन, इह अवसर नप मनरली ।। वा० -- 'जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे'- जिम उववाइ नै विषे अट्टणशाला ते ब्यायामशाला नों वृत्तांत अने वलि मंजन घर नों वृत्तांत कह्यो तिण प्रकार करिकै इहां पिण कहिवो। १५. यावत चंद्र तणो पर, प्रियदर्शण जन प्यारो जी, मंजन घर थी नीसरी, आवै नप तिणवारो जी। आवियो नृप बारली, उवठाणसाला छै जिहां, सिंहासण पूर्व दिशि साहम, मुख करी बैठो तिहां । आप थी ईशाणकूणे, आठ भद्रासण वरै, रचावै सित पटे ढाक्या, यावत चंद्र तणी परै ।। १६. सरसव पवर करी कियो, मंगलीक उपचारो जी, भद्रासण एहवा भला, पेखत पामै प्यारो जी। प्यार पामै पेखतां वलि, आप थी दूरो नहीं, ढूंकड़ो पिण नहीं अछे त्यां, वर परेच खंचावहीं। अभ्यंतर आस्था मंडप, तास मध्म भागे लियो, जवनिका नों अधिक वर्णन, सरसव पवर करी कियो ।। १७. नाना विविध प्रकार नां, मणि चंद्रकांत आदो जी, कतनादिक रत्न थी, मंडित चित अहलादो जी। अहलाद चित्तज पेखतां ह, घणु देखवा जोग है, महामूल्य वर पट्टण सेती, नीपनों आरोग है। सूत्रमय पट अछे सूक्षम, भांत शत चित्रित घनां, त्राण रक्षक जवनिका रे, नाना विविध प्रकार नां ।। १८. ईहामृग वृषभा वली, तुरग नर मगर पंखी पेखो जी, श्वापद भयंग नैं किन्नरा, रूरू मग नों विशेखोजी । विशेष मृग नों तेह रूरू, सरभ पारासर कह्या, चमर कंजर वनलता, वलि लता पद्म तणी लह्या । एह भाते चीता छ, जवनिका परियच भली, अभ्यंतर पास रचावी, ईहामृग वृषभा वली।। १६. सिद्धत्थगकयमगलोवयाराइ रयावेइ, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते १७. नाणामणिरयणमंडियं अहियपेच्छणिज्ज महग्यवर पट्टणुग्गयं सहपट्टभत्तिसयचित्तताणं १८. ईहामिय-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-बालग-किन्नर रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं अभितरियं जवणियं अच्छावेइ व्याला:-स्वापद-भुजगाः.....'रुरवो-मृगविशेषाः शरभा-आटव्या महाकायाः पशवः परासरेति पर्यायाः .."एतासां यका भक्तयो-विच्छित्तयस्ताभिश्चित्रा या सा तथा। (वृ० ५० ५४२) १६. नाणामणिरयणभत्तिचित्तं अत्थरय-मउयमसूरगोत्थयं सेयवत्थपच्चत्थुयं अंगसुहफासयं सुमउयं पभावतीए देवीए भद्दासणं रयावेइ १६. नाना विविध विचित्र ही, रत्न मणी नां ताह्यो जी, भांते चित्रित एहवो, भद्रासण सुरचायो जी । रचाय भद्रासण आस्तरक, मृदू मसूरे ढाकियो, अस्त रज अथवा निमल, मृदु मसूरे आच्छादियो। *लय : इक दिन साधूजी वंदवा गई सुभद्रा नारो जी ४४२ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490