Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
४३. अट्ट सोवण्णिए पल्लंके
४४. अट्ट सोवण्णियाओ पडिसेज्जाओ
४३. आठ पल्यक सोना तणां जी कांइ. आठ रूपा नां पल्यंक।
आठ सोना-रूपा तणां जी कांइ. आपै नप शुभ अंक ।। ४४, आठ प्रति से ज्या सोना तणी जी कांइ. आठरूपा नी जाण ।
आठ सोना-रूपा तणी जो कांइ, ढोलिया प्रमुख पिछाण ।। ४५. आठ हंसासन आपिया जी काइ, हंस आकारे आसन्न ।
आठकोंचासन आपिया जी कांइ. ए कोच आकार प्रपन्न ।। ४६. इम गरुडासन अठ दिया जी कांड, उन्नतासन पिण आठ।
उन्नतादिक आकार छै जी कांड, शब्द थकी शुद्ध बाट ।
४५. अटु हंसासणाई अट्ठ कोंचासणाई
हंसासनादीनि हंसाद्याकारोपलक्षितानि (वृ० ५० ५४८) ४६. एवं गरुलासणाई उन्नयासणाई उन्नताद्याकारोपलक्षितानि च शब्दतोऽवगन्तव्यानि
(वृ० ५० ५४८) ४७. पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई
मगरासणाई ४८. अट्ठ पउमासणाई, अट्ठ दिसासोवत्थियासणाई
४६. अट्ठ तेल्ल-समुग्गे जहा रायपसेणइज्जे (सू० १६१)
जाव (सं० पा०) अट्ठ सरिसव-समुग्गे ५०. अट्ठ कोट्ठ-समुग्गे
४७. पनतासन दीर्घासणा जी काइ, भद्रासण प्रति पेख ।
अठ पक्षासन प्रति दिये जी कांइ, मगरासन सुविशेख ।। ४८. अठ पद्मासन प्रति दिये जो काइ, दिसा मौवस्तिक जेह ।
साथिया नैं रूपे करी जी काइ, युक्त अष्ट दै तेह ।। ४६. अष्ट तेल नां डाबडा जी कांड, रायप्रश्रेणी जम ।
जावत अठ सरसव तणां जी कांड, दिये डाबडा तेम ।। ५०. जाव शब्द थी जाणिय जी कांइ. चूर्ण द्रव्य सुगंध ।
तास पुड़ा अठ आपिया जी कांड, आणी हरष अमंद ।। ५१. इम नागर वेल तणां पुड़ा जी कांड, चूयवास पूड़ा एम।
तगर पुड़ा पिण आपिया जी कांइ, पुड़ा एलची रा तेम ।। ५२. अठ हरीयाल तणां पुडा जी काइ, पुड़ा हींगल ना पेख । ____टीकी प्रमुख अर्थे दियो जी काइ, मणसिल पुड़ा विशेख ।। ५३. अंजन सुरमा नां पुड़ा जी कांड, जाव शब्द थी एह ।
रायप्रश्रेणी थी कह्यो जी कांइ. अष्ट-अष्ट दै तेह ।। ५४. दासी अठ दे कूबडी जी कांइ, जिम उववाई मांहि ।
जावत दासी पारसी जी काइ, अष्ट-अष्ट दै ताहि ।।
वा०-'जहा उववाइए' इति इण बच करी जे का , ते इहां होज देवानंदा नां व्यतिकर नै विषे छ ते थकी हीज जाणवू ।
५१-५३, एवं पत्त-चोयग-तगर-एल-हरियाल-हिंगुलय
मणोसिल-अंजण-समुग्गे
५५. अष्ट छत्र वलि आपिया जी कांइ. छत्र धरणहारीज।
दासी आठ दिये वली जी कांइ, चामर इमज कहीज ।। ५६. अष्ट वींझणा आपिया जी कांइ, वींझणा नी सुविचार ।
धरणहारी अठ दासियां जी काइ, अठ वली करोडिकाधार ।। ५७. अष्ट क्षीर धाई दिये जी काइ, जाव अष्ट अंक धाय ।
दासी अष्ट अंग मर्दका जी कांइ, अल्प मर्दन करताय ॥ ५८. घणु मर्दन कर ते सही जी काइ, दासी आठ विचार ।
दियै अष्ट दासी बली जी कांड, स्नान करावणहार ।। ५६. दास्यां आठ दिये वलि जी काइ, मंडन करावणहार ।
पवर पोसाग सुहामणी जी कांइ, तेह करावण सार। ६०. अठ वण्णग पीसे तिके जी कांइ. चंदन पीसणहार।
तथा हरतालादिक भणी जी काइ, पेषण तेह विचार ।। १. सू० ३० २. पीकदानी।
५४. अट्ठ खुज्जाओ जहा ओववाइए (सू०७०) जाव अट्ठ
पारिसीओ वा०–'जहा उववाइए' इत्यनेन यत्सूचितं तदिहैव देवानन्दाव्यतिकरेऽस्तीति तत एव दृश्यम्
(वृ० ५० ५४८) ५५. अट्ठ छत्ते, अट्ठ छत्तधारीओ चेडीओ, अट्ठ चामराओ,
अट्ठ चामरधारीओ चेडीओ ५६. अट्ट तालियंटे, अट्ठ तालियंटधारीओ चेडीओ, अट्र
करोडियाओ, अट्ठ करोडियाधारीओ चेडीओ ५७,५८. अट्ठ खीरधाईओ जाव (सं० पा०) अट्ट अंक
धाईओ, अट्ठ अंगमद्दियाओ, अट्ठ उम्मद्दियाओ, अट्ठ छहावियाओ इहांगमदिकानामुन्मदिकानां चाल्पबहुमर्दनकृतो विशेषः
(वृ० ५० ५४८) ५६. अट्ठ पसाहियाओ
'पसाहियाओ' त्ति मण्डनकारिणीः (वृ०प० ५४८) ६०. अट्ठ वण्णगपेसीओ
'वन्नगपेसीओ' त्ति चन्दनपेषणकारिका हरितालादिपेषिका वा
(वृ० ५० ५४८)
श० ११, उ० ११, ढाल २४४ ४५६
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490