Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 488
________________ ३२. बाधा रहित सुख भोगवै रे, सेवं भंते ! गोतम कहै रे लाल, तुम्ह सत्य वचन समृद्ध | सुखकारी रे || ३३. एकादशमां शतक नों रे, द्वादशमों उद्देश । सुखकारी रे आयो शतक इग्यारमो रे लाल, 1 एहवा शाश्वता सिद्ध । सुखकारी रे। ३४. दोयसौ नैं अडतालीसमी रे, अर्थ रूप सुविशेष | ४७२ भगवती-मोद भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे लाल, Jain Education International सुखकारी रे || आसी वाल उदार सुखकारी रे। गीतक-छंद १. एकादशम जे शतक नों, व्याख्यान म्हैं कीधूं सही । वर न्याय निर्णय मेलिया, फुन सूत्र अनुसारे वही ॥ २. इह विषे जो हेतू तिको, जन सुणो घर आह्लाद ही ॥ भिक्षु नें भारीमाल फुन, नृपइंदु नोंज प्रसाद ही ।। 'जय जय' संपति सार ॥ सुखकारी रे ॥ एकादशशते द्वादशोद्देशकार्थः ||११|१२|| ३२. अब्बाबाहं सोक्खं अणुभवंति सासयं सिद्धा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । ( श० ११ १६६ ) १२. एकादशशतमेवं व्याख्यातमबुद्धिनापि यन्मयका हेतुस्तत्राग्रहिता, श्रीबादेवीप्रसाद वा ॥ ( वृ० प० ५५२ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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