Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
जोग द्वार (१२) ४६. स्यूं प्रभु ! ते मन जोगी, के वच जोगी काय प्रयोगी?
जिन कहै मन वच नाय, काय जोग इक बहु वच पाय ।।
उपयोग द्वार (१३) ५०. प्रभ ! स्यू ते सागारोवउत्ता, के अणागारोवउत्ता उक्ता ?
जिन कहै सागारोव उत्ते, इक वचन करीनें प्रयुक्ते ।।
४६. ते णं भंते ! जीवा कि मणजोगी? वइजोगी?
कायजोगी? गोयमा ! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा।
(श० ११११५) ५०. ते णं भंते ! जीवा कि सागारोवउत्ता? अणागारोव
उत्ता ?
गोयमा ! सागारोवउत्ते वा । ५१. अणागारोवउत्ते वा--अट्ठ भंगा। (श० ११।१६)
५१. अथवा अणागारोवउत्ते, ए पिण एक वचन करि उक्ते । इम अठ भंगा अवधार, इक द्विक योगिक च्यार-च्यार।
वर्णादि द्वार (१४) ५२. प्रभु ! उत्पल शरीर में तास, केता वर्ण गंध रस फास?
उत्तर-वर्ण पंच गंध दोय, रस पंच फर्श अठ होय ।।
५३. ते पिण आत्म स्वरूपे जाण, अवर्ण अगंध पिछाण ।
वलि फर्श अनैं रस नांय, जीव ते अरूपी कहिवाय ।।
५२. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा, कतिगंधा,
कतिरसा, कतिफासा पण्णत्ता? गोयमा ! पंचवण्णा दुगंधा पंचरसा अट्ठफासा
पण्णत्ता। ५३. ते पुण अप्पणा अवण्णा, अगंधा 'अरसा, अफासा" पण्णत्ता !
(श०११११७) 'अप्पण' त्ति स्वरूपेण 'अवर्णा' वर्णादिजिताः अमूर्तत्वात्तेषामिति ।
(वृ०प०५१२) ५४. ते णं भंते ! जीवा कि उस्सासगा ? निस्सासगा?
नो उस्सासनिस्सासगा? 'नो उस्सासनिस्सासए' त्ति अपर्याप्तावस्थायाम् ।
(वृ० ५० ५१२) ५५. गोयमा ! उस्सासए वा, निस्सासए वा
उस्सास द्वार (१५) ५४. प्रभु ! उस्सासगा ते जीवा, के निस्सासगाज कहीवा ।
कै उस्सास-निस्सास नांय ? ए छै अपर्याप्त अवस्थाय ।।
५५. जिन उत्तर दिय सुचंग, इकसंयोगिक षट भंग ।
एक वचन उस्सासए तास, अथवा एक वचन ए निस्सास ॥ ५६. अथवा नो उस्सास-निस्सास, ए पिण एक वचन सुविमास ।
एवं बहु वचने त्रिहं जाण, इकयोगिक षट ए पिछाण ॥ ५७. द्विकयोगिक भांगा बार, त्रिकयोगिक आठ विचार ।
एवं सर्व भांगा छब्बीस, तिके यंत्र थकी सुजगीस ।।
५६. नो उस्सासनिस्सासए वा, उस्सासगा वा, निस्सासगा
वा, नो उस्सासनिस्सासगा वा, ५७. अहवा उस्सासए य, निस्सासए य....." एते छब्वीसं भंगा भवंति ।
(श०११।१८) द्विकयोगे तु यथायोगमेकत्वबहुत्वाभ्यां तिस्रश्चतुर्भगिका इति द्वादश, त्रिकयोगे त्वष्टाविति अत एवाह-"एए छब्बीसं भंगा भवंति' त्ति। (वृ० ५० ५१२)
१. इकसंजोगिक ४ भांगा१. सागारोवउत्ते १
३. सागारोवउत्ता३ २. अणागारोवउत्ते २
४. अणागारोवउत्ता ३ द्विकसंजोगिक ४ भांगा५. सागारोवउत्ते १ अणागारोवउत्ते १ ७. सागारोवउत्ता ३, अणागारोवउत्ते १ ६. सागारोवउत्ते १ अणागारोवउत्ता ३८.सागारोवउत्ता ३, अणागारोवउत्ता ३
एवं सर्व ८ भांगा।
१. जयाचार्य ने पहले अफासा और उसके बाद अरमा
की जोड़ की है।
३६२ भगवती-जोड़
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/393b08e37e233b574473086451700e503c65443220d51c026dc99b601e3d4578.jpg)
Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490