Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वा० - इहा अष्ट प्रदेश रुचक, तेह्नों हेठलो प्रतर, तेह नीचे नवसौ योजन लगे तिर्यग लोक छै । तिवार पछी नीचे रह्या मार्ट नीचलो क्षेत्र लोक कहिये, ते साधिक सात राज प्रमाण है ।
तथा 'तिरिय' त्ति- रुचक नीं अपेक्षाए नवसौ योजन ऊंचो तेहथी नीच पिण नवसौ योजन - ए अठारंसी योजन मान तिर्यगरूपपणां थकी तियंग लोक क्षेत्र लोक कहिये ।
तथा 'उड्ढत्ति' - तिर्यग लोक ने ऊपर देसोन सात राज प्रमाण ऊर्द्ध भागे वत्तं ते मार्ट ऊर्द्धलोक क्षेत्रलोक कहिये ।
अथवा जिण लोक नैं विपे क्षेत्र नां स्वभाव थकीज द्रव्यां नो अशुभ परिणाम छँ तेहथी-अधोलोक क्षेत्र लोक । तथा मध्यम अनुभाव क्षेत्र अति शुभ नहीं, अति अशुभ नहीं, तद्रूप लोक ते तिर्यक् लोक क्षेत्र लोक । तथा द्रव्य नो शुभ परिणाम घणो जिहां ते ऊर्द्धलोक क्षेत्र लोक कहिये ।
१.
५. प्रभु ! अधोलोक सितलोक कतिविध ? जिन कहै सप्त प्रकार | रत्नप्रभा पृथ्वी यावत तल, सप्तम पृथ्वी धार ॥
६. प्रभु ! तिरियलोक खित्तलोक कतिविध ?
जिन कहै असंख प्रकार | द्वीप नें जाव, स्वयंभूरमण समुद्र विचार ||
जंबू
७. प्रभ ! ऊर्डलोक तिलोक कतिविध ? जिन कहे पर प्रकार । बार कल्प ग्रैवेयक अनुत्तर, सिद्ध शिला सुविचार ||
८. अपोलो
प्रभु ! किन संठाणे ? जिन कहै तत्राकार' |
अधोमुख जे सरावला नं. संठाणे सुविचार ||
९. तिरियलोक प्रभु ! किन संठाणे ? जिन कहे भल्तरि आकार । ऊंचपणा भी अप कहीजे, तिरछो महाविस्तार ॥
४१६ भगवती जोड़
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वा० इह किलाष्टप्रदेशो रुचकस्तस्य चाधस्तनप्रतरस्याधी योजनानि पालो परे गाथः वादकः साधिप्रमाण: 'तिरियलोयखेत्तलोए' त्ति रुचकापेक्षयाऽध उपरि च नव नव योजनात गुरुपत्वात्तिर्यमुखी स्तपः क्षेत्रलोकः 'उत्तए ति तिलोकस्योपरि देशोनसप्तलोकस्तद्वषः क्षेत्र
प्रमाण ऊर्ध्वभागतित्वा लोकफः अवाः परिणामावानुभावाच् यत्र लोके द्रव्याणामसावधोलोकः, तथा तिर्यङ् - मध्यमानुभावं क्षेत्र नातिशुभ नान्यस्य तपोलोक स्तिनोः तथा उद्ध्वं गुनः परिणामो बाहुल्येन द्रव्याणां यत्रासावूर्ध्वलोकः,
( वृ० प० ५२३, ५२४) कतिविहे ते? तं जहा - रयणप्पभापुअहेतमापुढविलीय (TO PRIER) कतिविहे प? गोयमा ! असंखेज्ज विहे पण्णत्ते, तं जहा - जंबुद्दी वे दीतिर जातिरि
६.
योबेततोए ।
(१० ११०२२) ७.उ भने तिविहे ? गोमा ! पन्नरसविहे पण्णत्ते, तं जहा सोहम्म पजाब (सं० पा० ) अय
म
५.
भने गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, विमलए जाव खेतसीए ।
लोए अणुमिाणत ईसिपबारए । ( १९९४) ८. अहेलोयखेतलोए णं भंते ! किंसटिए पण्णत्ते ? गोयमा! तप्पागारसंठिए पण्णत्ते । ( श० ११२६५) 'तप्पागारसंठिए' त्ति तप्रः - उडुपकः अधोलोक क्षेत्रलोकोऽयमुतरावाकारसंस्थान इत्यर्थः
(० ० ५२४) ६. रिए भए पष्णते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते ।
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(० ११०२६) 'रिदिए' ति अन्योन्यत्वान्महाविस्तारत्वाच्य तिर्यग्लोक क्षेत्रलोको झल्लरीसंस्थितः
(२०१० ५२४)
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