Book Title: Bhagavati Jod 03
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 442
________________ १६. गयो क्षेत्र भी अनंतगुणो हो, अणगया क्षेत्र थकी गयो हो, १७. इतरो मोटो अलोक ही एकादशमी शतक न हो, १८. ढाल दोयसौ चोतीसमी हो, भिक्षु ऋषिशय तणां प्रसाद थी हो, 'जय जय' मंगलमाल || नैं भारीमाल । अगगयी क्षेत्र पिछाण भाग अनंतमें जाण ॥ कहे गोतम ने जिनेश । दशम उगम देश || ढाल : २३५ चूहा १. पूर्वे लोकालोक नीं, वक्तव्यता पहिछाण । लोक एक प्रदेश गत एकेंद्रियादिक जाण ।। J * प्रभूजी ! आप तणी बलिहारी (ध्रुपदं ) २. लोक त विशेषे कांद एक आकाश प्रदेशे हो, प्र. जे एकद्री नां प्रदेशा, जाय पंचिदि अणिदि नां कहता हो, प्र. ॥ ३. बंध्या ते मोहीमांय बलि मोहोमांहि कर्णाय हो, प्र. जाव अन्योअन्य जेह घटपणे करीते हो प्र॥ ४. प्रभु! ते जीवां रा प्रदेश त्यारे महामहि सुविशेष हो, प्र. किचित पोड़ा कहिये, अथवा बहु वाधा लहियै हो, प्र. ॥ ५. छेद त्वचा न करेह ? जिन कहै अर्थ समर्थन एह हो. प्र. वलि गोतम पूछंत, किण अर्थे पीड़ न हुंत ? हो, प्र. ॥ 1 9 Jain Education International ६. जिन भावे जिनराय, दृष्टांत देह कहै बाय हो, गोमजी नाटकणी इक होय, श्रृंगार तणो पर सोय हो । (गोयमजी ! सांभल तं चित स्थाय ॥ ७. मनोहर देश सुरीत जावत ते युक्त संगीत हो, गो । जाव शब्द में जाण, रायप्रश्रेणी रा पाठपिछाण हो, गो. 11 ८. ते कहिवा इह रीत, संगत प्राप्ति करि सहीत हो, गो । तास गमन गति रूड़ी, मुख हास करोनें सनूरी हो, गो. ॥ १. मृदु मंजुल वर वाणी, तनु चेष्टा तास बखाणी हो, गो. 1 वारू बात विलास, लीला सहित बोलणो तास हो, गो. ॥ १०. निपुणपणे करि युक्त उपचार करिने संयुक्त हो, गो । एहवी नाटकणी ताहि, ते रंग स्थानक रे मांहि हो, गो. ॥ *लय : स्वामीजी ! थांरा दर्शन १. सू० ७० ४२६ भगवती-जोड़ १६. गयाओ से अगए अनंतगुणे, अगयाओं से गए अनंतभागे । १७. अलोए णं गोयमा ! एमहालए पण्णत्ते । १. पूर्व लोकालोक वक्तव्यतोक्ता, वक्तव्य विशेषं दर्शयन्नाह - २. लोगस्स ! एम्मि आमासपदे ने एनदिय पदेसा जाव पंचिदियपदेसा अणिदियपदेसा अथ लौकैकप्रदेशगतं ( वृ० प० ५२७) ३. अण्णमण्णबद्धा अण्णमण्णपुट्ठा जाव (सं० पा० ) अण्णमण्ण घडत्ताए चिट्ठति ? किंचि आवाहं वा ४. अस्थि णं भंते ! अण्णमण्णस्स बाबाहं वा उप्पायंति ? ( श० ११।११० ) ५. छविच्छेदं वा करेंति ? मोट्ठे सम सेकेणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चइ" करेंति १०. निउणजुत्तोवयारकुसला ६,७. गोयमा ! से जहानामए नट्टिया सिया - सिंगारामारवा जाव (सं० पा०) कलिया। 'जा कलियति इवात्करणादेयं दु ( वृ० प० ५२७ ) For Private & Personal Use Only (० ११।१११) "आबाहं वा ८६. संग-प-य भणिय वेट्ठिय विलास-सननिय संलाव "रंगडापसि www.jainelibrary.org

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